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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासदेव था। कवि दामोदर ने सल्लखणपुर में रहते हुए पृथ्वीधर के उल्लेख किया है कि उसने राष्ट्र कूट राजा खोट्टिगदेव की लक्ष्मी पुत्र रामचन्द्र के उपदेश एवं आदेश से तथा मल्हपुत्र नागदेव के का अपहरण किया था। इस कोश में अमरकोश की रीति से अनुरोध से नेमिनाथ चरित्र वि.सं. १८७ में परमार वंशीय राजा । प्राकृत-पद्यों में लगभग एक हजार प्राकृत शब्दों के पर्यायवाची देवपाल के शासन काल में बनाकर समाप्त किया।
शब्द कोई २५० गाथाओं में दिये हैं। प्रारम्भ में कमलासनादि १७. भट्टारक श्रुतकीर्ति - ये नदी संघ बलात्कारगण और
अठारह नाम-पर्याय एक एक गाथा में, फिर लोकाग्र आदि १६७ सरस्वतीगच्छ के विद्वान थे। ये त्रिभूवनमूर्ति के शिष्य थे। अपभ्रंश
तक नाम आधी-आधी गाथा में, तत्पश्चात्, ५९७ तक एक-एक भाषा के विद्वान थे। आपकी उपलब्ध सभी रचनायें अपभ्रंश
चरण में और शेष छिन्न अर्थात् एक गाथा में कहीं चार कहीं पाँच भाषा के पद्धडिया छन्द में रची गई हैं। चार रचनायें उपलब्ध हैं
और कहीं छह नाम दिये गये हैं। ग्रन्थ के ये ही चार परिच्छेद कहे
जा सकते हैं। अधिकांश नाम और उनके पर्याय तद्भव हैं। १. हरिवंशपुराण - जेरहट नगर के नेमिनाथ चैत्यालय .
सच्चे देशी शब्द अधिक से अधिक पञ्चमांस होंगे।३४ में सं. १५५२ माघ कृष्णा पंचमी सोमवार के दिन हस्तनक्षत्र के समय इसे पूर्ण किया।
२. तिलकमंजरी - यह गद्यकाव्य है और इसकी भाषा
बड़ी ओजस्विनी है।३५ २. धर्मपरीक्षा - इस ग्रन्थ को भी सं. १५५२ में रचा। क्योंकि इसके रचे जाने का उल्लेख अपने दूसरे ग्रन्थ परमेष्ठि.
३. अपने छोटे भाई शोभनमुनिकृत स्तोत्र ग्रन्थ पर एक प्रकाशसार में किया है।
संस्कृत-टीका। ३. परमेष्ठिप्रकाशसार - इसकी रचना वि.सं. १५५३
४. ऋषभपंचाशिका ५. महावीरस्तुति ६. सत्यपुरीय की गरुपंचमी के दिन मांडवगढ के दर्ग और जेरहट नगर के ७. महावीरउत्साह-अपभ्रंश और ८. वीरथुई इनकी कृतियाँ है। नेमिश्वर जिनालय में हुई।
१९. कवि वीर - ये अपभ्रंश भाषा के कवि थे। इनके द्वारा ४. योगसार - यह ग्रन्थ सं. १५७२ मार्गशीर्ष महीने के रचित वरांगचरित, शांतिनाथचरित, सद्धय वीर अम्बादेवी राय शुक्ल पक्ष में रचा गया। इसमें गृहस्थोपयोगी सैद्धांतिक बातों पर और जम्बूसामिचरिउ का पता चलता है। किंतु इनकी प्रथम प्रकाश डाला गया है। साथ में कुछ मुनिचर्या आदि का भी
चार रचनाओं में से आज एक भी उपलब्ध नहीं है। पाँचवी कृति उल्लेख किया गया है।
'जम्बूसामिचरिउ' की अंतिम प्रशस्ति के अनुसार वि. सं. १०७६
में माघ शुक्ला दसवीं को लिखी गई। कवि ने ११ संधियों में १८. कवि धनपाल - ये मूलत: ब्राह्मण थे। लघु भ्राता से जैन
चम्बूस्वामी का चरित्र चित्रण किया है। वीर के जम्बूसामिचरित्र धर्म में दीक्षित हुए। पिता का नाम सर्व देव था। वाक्पतिराज
में ११ वीं सदी के मालवा का लोकजीवन सुरक्षित है। वीर के मुंज की विद्वत् सभा के रत्न थे। मुंज द्वारा इन्हें सरस्वती की
साहित्य का महत्त्व मालवा की भौगोलिक, आर्थिक, राजनैतिक उपाधि दी गई थी। संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं पर इनका
और लोकसंस्कृति की दृष्टि से तो है ही परन्तु सर्वाधिक महत्त्व समान अधिकार था। मुंज के सभासद होने से इनका समय ११
मालवी भाषा की दृष्टि से है। मालवी शब्दावली का विकास वीं शताब्दी में निश्चित होता है।
'वीर' की भाषा में खोजा जा सकता है। इन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे जो इस प्रकार है -
२०. मेरुतुंगाचार्य - इन्होंने अपना प्रसिद्ध ऐतिहासिक सामग्री १. पाइअ लच्छी नाम माला - इसकी प्रशस्ति के से परिपूर्ण ग्रन्थ प्रबंध चिंतामणि वि.सं. १३६१ में लिखा। इसमें अनुसार कर्ता ने अपनी भगिनी सुन्दरी के लिए धारा नगरी में पाँच सर्ग हैं। इसके अतिरिक्त विचारश्रेणी स्थविरावली और वि.सं. १०२९ में लिखी थी, जबकि मालवनरेन्द्र द्वारा वि.सं.१०२९ महापुरुषचरित या उपदेशशती जिसमें ऋषभ देव, शांतिनाथ में मान्यखेट लूटा गया था। यह घटना ऐतिहासिक प्रमाणों से नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान महावीर तीर्थकरों के विषय में भी सिद्ध होती है। धारा नरेश हर्षदेव ने एक शिलालेख में जानकारी है. की रचना की।
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