________________ प्राचीन भारतीय मूर्तिकला को मालवा की देन 231 कि शुंगकाल, गुप्तकाल तथा परमारयुग में मालवा ने भारतीयकला की जो ऋद्धि की है वह उपेक्षणीय नहीं हो सकती। मूर्तिकला के विदिशा, सांची तथा परित: क्षेत्र, उज्जयिनी, धारा एवं परितः क्षेत्र केन्द्र रहे हैं। यहां देवता एवं प्रकृति का ही चित्रण नहीं हुआ अपितु राजा एवं प्रजा को एक साथ भी प्रस्तुत किया गया है / सांची में प्रजा एवं राजा, साधना और श्रम, राजधर्म तथा लोक धर्म का जैसा समन्वय पाया जाता है वह अन्यत्र सरलता से सुलभ नहीं है। प्रतिमा-विज्ञान का सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक जो विकास यहाँ हुआ वह परवर्ती काल में अन्य प्रदेशों के लिए भी अनुकरणीय रहा / भोज के युग की वाग्देवी की प्रतिमा का अनुकरण परवर्तीकाल में भी होता रहा यद्यपि अनुकर्ता उस स्तर तक सफलता नहीं पा सके। स्वयं भोज ने समरांगणसूत्रधार में मूर्ति विषयक पर्याप्त विवरण प्रस्तुत कर कलावन्तों को उस ओर प्रेरित किया है। 1 न जाने क्यों, श्वेताम्बर मूर्तिकला की ओर लेखक की दृष्टि नहीं जा सकी है, जबकि कला की दृष्टि से उसका भी अपना विशिष्ट स्थान है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org