SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृति का आलोक श्री तिलोकऋषि जी म. ने अनेकों लावणी, सज्झाय, चरित, रास और मुक्तक रचनाएँ की हैं। 'साधु छंद' में भी साधु के गुणों का दिग्दर्शन कराया है। उपसंहार उक्त काव्य रचनाओं के अलावा श्री मनोहरदास जी म. की संप्रदाय के श्री रत्नचंद जी म. ने भी वि. सं. 1850 से वि.सं. 1621 के मध्य अनेक ग्रंथों की रचना की, जिसमें ‘सती स्तवन' पद्य अत्यंत सरस भाषा में लिखा धोरी धर्म धरेल ध्यान धर थी धारेल धैर्ये धुनि। छे संतोष सुशील सौम्य समता ने शीयले चंडना नीति राय दया क्षमाधर मुनि / कोटि करूं वंदना। ऐसे एक नहीं अनेक पद्य श्रीमद् जी के गुरु भक्ति से भरे पड़े हैं। ये सारे पद्य गुजराती भाषा में रचित है। श्रीमद् पर ही श्रद्धा रखने वाले श्री सहजानंद जी म. ने साधु-स्तुति, गुरु भक्ति पर अनेक पद लिखे हैं जो 'सहजानंद पदावली' में है। इसी प्रकार जैन दिवाकर श्री चौथमल जी म, श्री खूबचन्द जी म. आदि अर्वाचीन महान् जैनाचार्यों और . संतों ने जैन भारतीय भंडार को स्तुति, स्तोत्र आदि साहित्य से इतना भरा है, कि उसे प्रस्तुत करने के लिये एक अलग शोध-ग्रन्थ की जरूरत है। ___ अध्यात्म जगत के साधक श्रीमद् राजचंद्रजी ने सद्गुरु पर अनेक दोहे/पद रचे हैं। संत का अन्तर और बाह्य चारित्र संसार-दुःख का नाश करनेवाला है।' मुनि मोह, ममता और मिथ्यात्व से रहित होता है, श्रीमद् जी ने ऐसे माया मान मनोज मोह ममता मिथ्यात्व मोडी मुनि। 0 महासती विजयश्री 'आर्या' जैन समाज की विदुषी साध्वी रत्न हैं। आपने एम.ए.एवं सिद्धांताचार्य की श्रेष्ठ उपाधियां प्राप्त की तथा अपने शिक्षा काल में स्वर्णपदक प्राप्त किये। आप प्रतिभावान तथा मेधावी हैं। आप एक श्रेष्ठ कवयित्री एवं कुशल लेखिका हैं। पुरुषार्थ का प्रतीक है। अब तक आपकी आठ कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। जैन साहित्य जगत् को आप जैसी महासाध्वी से अनेक अपेक्षाएं हैं। -सम्पादक 1. बाह्य चरण सुसंतना टाले जननां पाप। अंतर चारित्र गुरुराज मुं, भागे भव संताप / / - श्रीमद् राजचंद्र प्राचीन जैन हिंदी साहित्य में संत स्तुति 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211426
Book TitlePrachin Jain Hindi Sahitya me Sant Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshreeji Sadhvi
PublisherZ_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf
Publication Year1999
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Stotra Stavan
File Size668 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy