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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
काल प्रमाण
भाव प्रमाण
मान
उन्मान
अवमान (रेखिकमान )
गणिम (संख्यामान)
प्रतिमान
धान्यमान
तत्वार्थ सूत्र : वृत्त परिक्षेप ( परिधि )
ज्या ( जीवा ) इषु (शर)
विष्कंभ (व्यास)
धनुकाष्ठ (चाप)
उन्नत
एकीकरण
करणसूत्र
गुण
गुणोत्तर
(जंबुदीवसमास )
इस प्रकार जैन साहित्य के इन ग्रन्थों में रेखागणित, बीजगणित आदि के क्षेत्र में कई शब्द पहली बार प्रयोग में आये हैं । कोण, पाटी, श्रेढी, गच्छ जीवा, आदि शब्द प्राकृत ग्रन्थों से ही संस्कृत साहित्य में प्रविष्ट हुए हैं । आज गणित के क्षेत्र में संख्यावाचक शब्द प्रायः गणितसार संग्रह से ही गृहीत किये गये हैं । नील को छोड़कर प्रायः सभी आधुनिक संख्यावाची शब्दों का प्रयोग महावीराचार्य ने अपने ग्रन्थ में किया है । कुछ विशेष शब्द द्रष्टव्य हैं
गणितसार संग्रह :
संकलित
घनांगुल
प्रथम वर्ग
द्वितीय वर्ग
तृतीय वर्ग पवाँ वर्ग प्रथम वर्गमूल द्वितीय वर्गमूल
तृतीय वर्गमूल
वृद्धयुत्तर
हीनोत्तर
निम्न
अर्धवृत्त
२०२ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक-सम्पदा
बाहु ( त्रिज्या ) भेदगुणन ( खण्ड - गुणन ) विष्कंभा
व्यासार्ध
निम्न ( नतोदर ) निरुद्ध
पृष्ठ
प्रचय
मासिकवृद्धि
मिश्रधन
घनीवृत्त
वृत्त
चय
शतवृद्धि (प्रतिशत) शंख, महाशंख
समवृत्त
श्रीधराचार्य ने भी गणितीय शब्दावली में कई विशिष्ट शब्द जोड़े हैं । यथाचय संकलित
संस्थानक
आय (धन)
व्यय (ऋण)
सम
विषम
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