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ओई तरं बैठी ननद भोजाई कर रही रावन की बात जौन खना भौजी तुमें हर लेगव हमें उरेइ बताव । रवन उरे हो जबई दारी ननदी घर में सबर न होय । जो सुन पाहें बीरन तुम्हारे घर में देंय निकार । राम की सौगंध लखन की सौगंध दसरथ लाख दुहाई । हमारी सौगंध खाओ बारी ननदी तुमको कहा पट जाई । अपनी सौगंध खात हों भोजी, सिजिया पावन देऊ । सुरहन गऊ के गोवर मगाओं वैया मिटिया देव लिपाई । हाथ बनाये, पांव बनाये और बत्तीसई दांत | ऊपर को मस्तक लिखन नहि पाओ, आ गए राजाराम । ल्याव ने बैया पिछोरिया लिखना देय लुकाय
जैन रावण चित्र कथा का विदेशी रामकाव्य पर प्रभाव :
जावा के 'सुरत काण्ड' में कैकयी स्वतः सीता के पंखे पर रावण का चित्र अंकित करती है और सुषुप्ता वस्था में लीन सीता के पर्व पर रख देती है। हिकायत सेरी राम' में कीकवी देवी भरत शत्रुधन की सहोदरी है । सीता ने कीकवी देवी के आग्रह के कारण पंखे पर रावण का चित्र खींच दिया । कीकवी ने उसे सीता के वक्षस्थल पर रख दिया और यह आक्षेप किया कि सोने के पूर्व सीता ने उस चित्र का चुम्बन किया था । राम ने की कवी पर विश्वास कर लिया।
हिन्देसिया के 'हिकायत महाराज रावण' में यह वृत्तांत आया है कि रावण वध के उपरान्त राम को लंका में रहते सात माह हो गये । रावण की पुत्री अपने पिता का चित्र सोती सीता की छाती पर रख देती है। सीता निद्रावस्था में उस चित्र का चुम्बन करती है, उसी क्षण राम उनके पास आते हैं और उस दृश्य को देखकर राम आग बबूला हो जाते हैं ।
हिन्दचीन अर्थात् रुमेर वाङ्मय की सर्वाधिक सशक्त कृति 'रामकेति (सत्रहवीं शताब्दी) है। इसके पचहत्तरवें सर्ग में अतुलय राक्षसी सीता की सखी वन
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कर उससे रावण का चित्र अंकित कराती है और इस चित्र में प्रविष्ट हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप सीता प्रयास करने के बाद भी उस चित्र को मिटा नहीं पाती है, और अंततः हताश होकर पलंग के नीचे उसे छिपा देती है । तदुपरांत राम के इस पलंग पर लेट जाने पर उनको तेज बुखार हो आता है । जब उन्हें उस चित्र का पता चलता है तो वे लक्ष्मण को सीता को वन में ले जाकर मार डालने का आदेश देते
हैं ।
श्यामदेश की रचना 'राम कियेन' में अल नामक शूर्पणखा की पुत्री सीता से रावण का चित्र अंकित करवाती है और तत्पश्चात् इसी चित्र में प्रवेश कर जाती है जिससे सीता उसे मिटा नहीं पाती है।
सोलहवीं शताब्दी में 'राम जातक' की रचना हुई थी श्याम के उत्तर पूर्वीय प्रांतों के लाभो भाषा में जिसमें भी रावणचित्र के कारण सीता त्याग होता है ।
लाओस के 'ब्रह्मचक्र' या 'पोम्पनका' में शूर्पणखा स्वतः छद्मवेश में सीता के पास आकर उनसे चित्र बनवा लेती है ।
थाईलैण्ड की 'बाई रामायण' में भी इसी चित्र की पर्याप्त चर्चा है।
सिंहली रामकथा में उमा सीता के पास आकर उनसे केले के पत्ते पर रावण का चित्र अंकित करवाती है । अकस्मात राम के आगमन पर सीता इस चित्र को पलंग के नीचे फेंक देती है। राम उस पलंग पर बैठ जाते हैं और पलंग काँपने लगता है । कारण विदित होने पर राम अत्यन्त क्रुद्ध हो जाते हैं ।
रावण के चित्र का मूल जिसने विदेशों में जाकर बड़ा धारण कर लिया है।
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उत्स जैन साहित्य है उग्र तथा विशिष्ट रूप
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