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किन्तु सीता कहीं नहीं मिल पायी। राम ने यह विचार करके कि मीता किसी हिंसक पशु द्वारा समाप्त हो चुकी है, अतएव, उन्होंने परावर्तित होकर सीता का श्राद्ध किया ।
(ख) धोबी का आख्यान :
जैन- राम- साहित्य में इसकी चर्चा नहीं मिलती । (ग) रावण का चित्र :
इस वृत्तांत को प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम एवं प्राचीनतम श्रेय जैन - राम साहित्य को है ।
हरिभद्र सूरि के ( अष्टम शताब्दी) उपदेश पद में सीता द्वारा रावण के चरणों के चित्र निर्मित करने का सूत्र मिलता है। टीकाकार मुनिच्चन्द्रसूरि ( द्वादश शताब्दी) के कथानानुसार सीता ने अपनी ईर्ष्यालु सपत्नी के प्रोत्साहन से रावण के पैरों का चित्र बनाया था। इस पर सपत्नी ने राम को यह चित्र दिसला दिया दिया और उन्होंने सीता का त्याग कर दिया ।
भद्रेश्वर की 'कहावली' (एकादश शताब्दी) में यह आख्यान आया है कि सीता के गर्भवती हो जाने पर ईर्ष्यालु तथा द्वेषमयी सपत्नियों के आग्रह पर सीता ने रावण के पैरों का चित्र निर्मित किया जिसे उन्होंने सीता द्वारा रावण के स्मरण के प्रमाण स्वरूप राम के समक्ष उपस्थित कर दिया । राम ने इसकी उपेक्षा करदी । सौतों ने रावण चित्र का किस्सा दासियों के द्वारा जनता में फैला दिया। तत्पश्चात राम गुप्त वेष धारण कर नगरोद्यान में गये जहाँ उन्होंने अपनी इस हेतु निंदा सुनी गुप्तचरों ने भी लोकापवाद की चर्चा की । राम का निर्देश पाकर कृतांतवदन तीर्थयात्रा के बहाने सीता को वन में छोड़ आया । उसके बाद राम ने लक्ष्मण एवं अन्य विद्याबरों के साथ विमान में चढ़कर सीतान्वेषण किया
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परन्तु उन्हें न पाकर यह समझ लिया कि वे किसी हिंसक जानवर का ग्रास बन गई हैं।
हेमचन्द्र के जैन रामायण' ( द्वादश शताब्दी) में भी यही गाथा है । नागरिकों ने भी सीता के लोकापवाद की चर्चा की जिसे राम ने ठीक पाया ।
देवविजयगणि के 'जैन रामायण' (सन् 159 ) में नारियाँ राम से शिकायत करती हैं कि सीता रावण के चरणों की पूजा-अर्चना करती है
स्वामिन् एषा सीता रावण मोहिता रावणांही भूमौ लिखित्वा पुष्पादिभिः पूजयति ॥
जैन रावण-चित्र- कथा का भारतीय रामायणों पर प्रभाव :
जैन राम - साहित्य में आयी, सीता द्वारा रावण के चित्र के निर्माण की घटना का भारतीय रामायणों पर व्यापक प्रभाव पड़ता दिखलायी देता है ।
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बंगाल में कृतिवास ओझा द्वारा लिखित रामकथा 'कृतिवास रामायण' या 'श्रीराम पांचाली' (पन्द्रहवीं शताब्दी का अंत) में सखियों से प्रेरित होकर सीता रावण का चित्र खींचती है ।
सिक्खों के दशमेश गुरु गोविन्दसिंह ने 'रामावतार कथा' या गोविन्द 'रामायण' (सन् 1668 ) में रावणचित्र के कारण राम के सीता पर संदेह होने का वृत्तांत मिलता है।
संस्कृत की 'आनन्द रामायण' (पन्द्रहवीं शताब्दी) के तृतीय सर्ग में कैकयी के आग्रह पर सीता रावण के सिर्फ अंगूठे का चित्र बनाती है जिसे कैकयी पूरा करती है, और राम को बुलाकर नारी चरित्र की आलोचना करती है
यत्र यत्र मनोलग्नं स्मयंते हृदि तत्सदा । स्त्रियाच चरित्र को वेत्ति शिवाया मोहिताः स्त्रिया ||
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