________________ आपाप्रव मनापORD . श्रीआनन्द अन्य धाआनन्दरा CORE 102 प्राकृत भाषा और साहित्य अधिक समावेश तो अवश्य हुआ किन्तु प्राकृत भाषा के अवान्तर भेदों के विशिष्ट ग्रन्थों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता था। इस विषय में विशिष्ट विद्वानों की एक परिषद का आयोजन करके प्राकृतभाषा की स्वतन्त्र परीक्षा नियत करने का निर्णय किया गया। तदनुसार सन् 1966 में 'प्राकृत भाषा प्रचार समिति' के नाम से एक संस्था की स्थापना की गई / संस्था की उपयोगिता पर ध्यान देकर समाज के अनेक अग्रगण्य महानुभावों ने अपना बहुमूल्य सहयोग देकर स्वल्प काल में ही इसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर दी। विद्वतपरिषद की सलाह से इस संस्था के उद्देश्य को सफल बनाने के लिए तीन योजनाओं को क्रियान्वित करने का निश्चय किया गया 1. प्रकाशन योजना 2. प्रशिक्षण योजना 3. परीक्षण योजना / प्रथम योजना के अन्तर्गत अद्यावधि इन ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया है-१ सुबोध प्राकृत व्याकरण भाग 1 / २—सुबोध प्राकृत व्याकरण भाग 2 / ३-सुबोध प्राकृत व्याकरण भाग 3 / ४प्राकृत व्याकरणम् आचार्य हेमचन्द्र छात्र संस्करण / ५–पाइयरयणावली भाग 1 / ६-पाइयरयणावली भाग 2 / ७--पाइयकुसुमावली। ८-पाली कुसुमावली। 8-कुम्मापुत्तचरियं / १०-बम्हदत्तो। ११-कव्यपरिमलो। प्रशिक्षण योजना के द्वारा विविध विद्यालयों और महाविद्यालयों में अर्द्धमागधी, प्राकृत तथा अन्य प्राकृत भाषा का शिक्षण देने वाले शिक्षकों को मानधन देकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है, यह अध्यापक संख्या 27 तक पहुँच गई है। विशिष्ट प्राकृत विद्वानों का सत्कार और शोध-कार्य करने की व्यवस्था है। योग्य स्थानों में सेमिनार (शिविर) का आयोजन करके प्राकृत भाषा पर विशिष्ट विद्वानों के व्याख्यान और शिक्षण शैली का प्रचार किया जाता है। परीक्षण योजना में प्राकृत भाषा की परीक्षाओं का आयोजन है-१-प्राकृत प्रथमा, २-प्राकृत द्वितीया, ३-प्राकृत प्राज्ञ, ४-प्राकृत प्रवीण, ५–प्राकृत प्रभाकर / इस प्रकार संप्रति 5 परीक्षाओं की व्यवस्था की गई है। इन परीक्षाओं में अनेक केन्द्रों से परीक्षार्थी सम्मिलित हो रहे हैं। इनमें से सफल परीक्षार्थियों के लिए प्रमाणपत्र के साथ पुरस्कार-पारितोषिक प्रदान करने की व्यवस्था है। विशेषता यह कि आचार्य श्री के सान्निध्य में रह कर कई संस्कृत के पंडित प्राकृत भाषा का अध्ययन करते रहते हैं। आप श्री की अध्यापन-कला बहुत ही सराहनीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org