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प्राकृत कथा साहित्य का महत्व
प्राकृत कथा साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ
काव्य की दृष्टि से प्राकृत कथा साहित्य को भी महाकाव्य, खण्डकाव्य और मुक्तककाव्य में विभाजित किया जा सकता है। पउमचरित्र, जंवरि पासनाहचरिअ, महावीरचरित्र, सुपासनाहचरित्र सुदंसणचरित्र कुमारपालचरि आदि महाकाव्य के लक्षणों से पूर्ण हैं । इन चरित्र -प्रधान काव्यों में प्रांतज, देशी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है तथा जिस प्रान्त में कथा काव्यों को लिखा गया, उस प्रान्त की संस्कृति सभ्यता, रहन-सहन का भी बोध हो जाता है ।
समराइच्चकहा, णाणपंचमीकहा, आक्खाणमणिकोस, कुमारवालपडिवोह, पाइअकहासंग्गह, मलयसुन्दरीकहा, सिरीबालकहा, कंबोडो, लीलावई, सेतुबंध, वसुदेवडी, आदि प्रमुख खण्डकाव्य हैं। मुक्तक काव्य के रूप में गाथा सप्तसती का विशेष नाम आता है। इन सभी कथा - काव्यों में त्याग, तपश्चर्या, साधना पद्धति एवं वैराग्य - भावना की प्रचुरता है। ये साधन जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण कहे गये हैं। इस मार्ग का अनुसरण कर मानव अपने जीवन को - समुन्नत बना सकता है ।
कथाओं का वर्गीकरण
प्राकृत कथाओं का वर्गीकरण विषय, पात्र, शैली और भाषा की दृष्टि से किया जा सकता है। विषय की दृष्टि से आगम ग्रन्थों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ रूप कथाओं के भेद उपलब्ध होते हैं । दशकालिक में 'अत्थकहा, कामकहा, धम्मक हा चेव मीसिया य कहा' । अर्थात्
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(१) अर्थकथा, (१) कामकथा, (३) धर्मकथा और (४) मिश्रितकथा — इन चार कथाओं और उनके भेदों का वर्णन दशवैकालिक सूत्र में किया गया है। समराइच्चकहा में अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और संकीर्णकथा का उल्लेख आता है । आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण प्रथम पर्व में ( श्लोक ११८ - ११९) में धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थ रूप कथाओं का वर्गीकरण करते हुए कहा है कि “धर्मकथा आत्मकल्याणकारी है और यह ही संसार के बन्धनों से मुक्त कर सच्चे सुख को प्रदान करने वाली है।" अर्थ और काम कथा धर्मकथा के अभाव में विकथा कहलायेंगी । डा० नेमिचन्द्र ने कथा साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि "लौकिक जीवन में अर्थ का प्रधान्य है। अर्थ के बिना एक भी सांसारिक कार्य नहीं हो सकता है सभी सुखों का मूलकेन्द्र अर्थ है अतः मानव की आर्थिक समस्याओं और उनके विभिन्न प्रकारों के समाधानों की कथाओं, आख्यानों और दृष्टान्तों के द्वारा व्यंग या अनुमित करना अर्थकथा है। अर्थ कथाओं को सबसे पहले इसीलिए रखा गया है कि अन्य प्रकार की कथाओं में भी इसकी अन्विति है" । "
विद्या, शिल्प, उपाय के लिए जिसमें वर्णन किया गया हो, वह अर्थ कथा है । क्योंकि अर्थ की प्रधानता अर्थात् असि मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प और सेवा कर्म के माध्यम से कथावस्तु का निरूपण किया जाता है । प्रेमीप्रेमिका की आत्मीयता का चित्रण काम - कथाओं में किया जाता है। प्रेम के कारणों का उल्लेख हरिभद्रसूरि की दशकालिक के ऊपर लिखी गयी वृत्ति में किया गया है—
सई दंसणाउ पेम्मं
पेमाउ रई रईय विस्संभो ।
विस्संना पणओ पंचविहं वड्ढए पेम्मं ॥
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अर्थात् सदा दर्शन, प्रेम, रति, विश्वास और प्रणय-पाँच कारणों से प्रेम की वृद्धि होती है । पूर्ण सौन्दर्य वर्णन (नख से शिख का) तथा वस्त्र, अलंकार, सज्जा आदि सौन्दर्य के प्रतीक हैं और इन्हीं माध्यमों या साधनों के आधार पर कामकथा का निरूपण किया जाता है ।
धर्मकथा द्रव्य
क्षेत्र, काल, तीर्थ, भाव एवं उसके फल की महत्ता पर प्रकाश डालती है । क्षमा, मार्दव,
१. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, डॉ० नेमिचन्द्र पृ० ४४५.
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