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प्राकृत एवं अपभ्रंश का आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं पर प्रभाव
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को छोड़कर शेष सभी में नपुंसकलिंग नहीं है। सिंहली में प्राणी तथा अप्राणीवाची आधार पर प्राणवान तथा प्राणहीन दो लिंग हैं जो द्रविड़ परिवार की भाषाओं के प्रभाव के सूचक प्रतीत होते हैं । शेष में पुल्लिग एवं स्त्रीलिंग दो लिंग हैं। इनमें भी बंगला एवं उड़िया में देशज शब्दों में लिंग विधान शिथिल है । जान बीम्स के अनुसार इनमें तत्सम शब्दों को छोड़कर शेष शब्दों में लिंग व्यवस्था नहीं है ।२७ (५) बहुवचन द्योतक शब्दावली
सिंधी, मराठी तथा पश्चिमी हिन्दी के अतिरिक्त शेष अन्य आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में कर्ताकारक के शब्दों में बहुवचन का द्योतन विभक्तियों से न होकर बहुवचन द्योतक शब्दों अथवा शब्दांशों से व्यक्त होने लगा है। उदाहरणार्थ, बंगला में "सकल" यथाकुक्कुर सकल (कुत्त)। इसी प्रकार उड़िया में "मनि" असमिया में "बीर" मैथिली में "सम" एवं भोजपुरी में "लोगनि" इत्यादि शब्द रूप बहुवचन द्योतक हैं। पश्चिमी हिन्दी, सिन्धी, मराठी में कर्ताकारक बहुवचन के वैभक्तिक रूप उपलब्ध हैं । यथा
सिन्धी-एकवचन-पिउ बहुवचन-पिउर मराठी-एकवचन-रात बहुवचन-राती
हिन्दी-एकवचन-लड़का बहुवचन-लड़के यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन भाषाओं में भी बहुवचन को स्वतन्त्र शब्दों द्वारा व्यक्त करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है । यथा
हिन्दी-एकवचन-राजा बहुवचन-राजा लोग
मराठी-एकवचन-दीर्घ बहुवचन-दीर्घ जण इस प्रकार की प्रवृत्ति संज्ञा शब्दों की अपेक्षा सर्वनाम रूप में अधिक है। यथा-पश्चिमी हिन्दी-हम लोग। भोजपुरी-हमनीका । मागधी-हमनी । मैथिली-हमरा सम । बंगला-आमि सब।
___ आधुनिक भारतीय भाषाओं की यह प्रवृत्ति मध्ययुगीन भाषाओं की व्यवस्था से अवश्य मिन्न है तथा अयोगात्मकता की ओर उन्मुख होने का सूचक है । (६) प्राकृत एवं अपभ्रश के क्रियारूप
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा की क्रिया संरचना का प्रभाव आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में वर्तमान अथवा वर्तमान सम्भावनार्थ काल एवं आज्ञार्थक रूपों पर पड़ा है।
अपभ्रंश में वर्तमान काल द्योतक उत्तम पुरुष-उं,हुँ, मध्यम पुरुष-हिंह एवं अन्य पुरुष-अह,-हि,-अन्ति विभक्तियां थीं।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में ये प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैंपुरुष वचन हिन्दी । गुजराती
उड़िया । पंजाबी
मराठी बंगला
एकवचन
उत्तम पुरुष
बहुवचन
एकवचन
मध्यम पुरुष
बहुवचन
एकवचन
अन्य पुरुष
बहुवचन | -एं
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