________________ प्रश्नव्याकरणसूत्र की प्राचीन विषयवस्तु की खोज 81 विवरण जुड़े जिनकी सूचना उसके स्थानांग के विवरण से मिलती तक प्रश्नव्याकरण के उपर्युक्त दो प्राचीन लुप्त संस्करणों की है। इसके पश्चात् ईसा की चौथी शताब्दी में ऋषिभाषित आदि भाग विषयवस्तु का प्रश्न है, उसमें से प्रथम संस्करण की विषयवस्तु अलग किये गये और उसे निमित्तशास्त्र का ग्रन्थ बना दिया, समवायांग अधिकांश रूप से एवं कुछ परिवर्तनों के साथ वर्तमान में उपलब्ध का विवरण इसका साक्षी है। इस काल में प्रश्नव्याकरण के नाम से ऋषिभाषित (इसिभासियाई), उत्तराध्ययन, सूत्रकृतांग एवं ज्ञाताधर्मकथा वाचनाभेद से अनेक ग्रन्थ अस्तित्व में थे ऐसी भी सूचना हमें आगम में समाहित है। द्वितीय निमित्तशास्त्र सम्बन्धी संस्करण की विषयवस्तु, साहित्य से मिल जाती है। लगभग ईसा की 6 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध जयपायड और प्रश्नव्याकरण के नाम से उपलब्ध अन्य निमित्तशास्त्रों में इन ग्रन्थों के स्थान पर वर्तमान प्रश्नव्याकरण सूत्र का आश्रव एवं के ग्रन्थों में हो सकती है। यद्यपि इस सम्बन्ध में विशेषरूप से संवर के विवेचन से युक्त वह संस्करण अस्तित्व में आया है जो वर्तमान शोध की आवश्यकता है। आशा है विद्वद्जन इस दिशा में ध्यान में हमें उपलब्ध है। यह प्रश्नव्याकरण का अन्तिम संस्करण जहां देंगे। सन्दर्भ पण्हावागरणेसु अद्वैत्तरं पसिणसयं अत्तरं अपसिणसयं अद्भुत्तरं बाहपसिणाइं अद्दागपसिणाई, अन्नेवि विचित्ता विज्जाइसया, नाग-सुवण्णेहिं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया नाग-सुवन्नेहिं सद्धिं दिव्व संवाया सद्धिं दिव्या संवाया आघविज्जन्ति। आघविज्जंति। -समवायांगसूत्र, 546 / पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वागरणगंथाओ पभिति............। इसिभासियाई-३१। वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जत्तीओ, संखेज्जाओ, पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा, संख, संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमगपसिणइं, से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंघे, पणयालीसं अज्झयणा, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। - पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई स्थानांगसूत्र, 10/116 पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता से किं तं पण्हावागरणाणि? पण्हावागरणेसु अट्ठत्तरं पसिणसयं पज्जवा, परित्ता तसा, अणन्ता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया अद्भुत्तरं अपसिणसयं, अद्रुत्तरं सिणापसिणसयं विज्जाइसया नाग-सुवन्नेहि जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जन्ति, पण्णविज्जन्ति, परूविज्जन्ति, सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति। दंसिज्जन्ति, निदंसिज्जन्ति, उवदंसिज्जन्ति। पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय पण्णवय-पत्तेअबुद्ध- से एवं आया, एवं नाया एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा विविहत्थभासा-भासियाणं अइसयगुण-उवसम-णाणप्पगार- आघविज्जई, स तं पण्हावागरणाई। -नन्दीसूत्र,५४। आयरियभासियाणं वित्थरेणं, वीरमहेसीहिं विविहवित्थरभासियाणं च आक्षेपविक्षेपैहेंतुनयाश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम्, जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खोम-आइच्चभासियाणं तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः।-तत्त्वार्थवार्तिक, 1/20 विविहमहापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा-देवयपयोग-पहाण-गुणप्पगासियाणं (पृ० 73-74) / सब्भूयदुगुणप्पभाव-नरगणमइविम्हयकराणं अइसयमईयकालसमय अक्खेवणी विक्खेवणी संवेयणी णिव्वेयणी चेदि चउविहाओ दम-सम-तित्थकरुत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं दुरहिगम-दुरवगाहस्स कहाओ वण्णेदि तत्थ अक्खेवणी नाम छद्दव्व-णव पयत्थाणं सरूवं सव्वसव्वन्नुसम्मअस्स अबुह-जण-विबोहणकरस्स पच्चक्खयपच्चयकराणं दिगंतरसमयांतर-णिराकरणं मुद्धिं करेंती परूवेदि। पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविज्जति। विक्खेवणी णाम परसमएण ससमयं दूसंती पच्छा दिगंतरसुद्धिं करती पण्हावागरणेसुणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ ससमयं थावंती छद्दव्वा-णवपयत्थे परूवेदि।। पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ संवेयणी णाम पुण्णफलसंकहा। काणि पुण्णफलाणि? तित्थयरनिज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ। गणहर-रिसि-चक्कवट्टि-बलदेव-सुर-विज्जाहररिद्धीओ। से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं उद्देसणकाला, णिव्वेयणी णाम पावफलसंकहा। काणि पावफलाणि? णिरय-तिरियपणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं कुमाणुसजोणीसु जाइ-जरा-मरण-वाहि-वेयणा- दालिद्दादीणि। पण्णत्ताई। संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता संसारसरीरभोगेसु वेरग्गुप्पाहणी णिव्वेयणीणा........। तसा, अणंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता पण्हाओ हद-नट्ठ-मुट्ठि-चिंता-लाहालाह-सुह-दुक्ख-जीविय- मरणभावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जति निदंसिञ्जति उवदंसिज्जंति। से एवं आया, से एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया जय-पराजय-णाम-दव्वासु-संखं च परूवेदि। आघविज्जंति। से तं पण्हावागरणाई 10 / -धवला,पुस्तक 1, भाग१, पृ० 107-8 / -समवायांगसूत्र, 546-549 / 8. वागरणगयाआ पाभात जाव साामत्त इम अज्झयण ताव इमा बाआ 5. से किं तं पण्हावागरणाइं? पण्हावागरणेस णं-अट्ठत्तरं पसिणसयं, पाढो दिस्सति, तंजहाः अद्भुत्तरं अपसिणसयं, अट्ठत्तर पसिणापणिसयं, तंजहा-अंगुट्ठपसिणाई, -इसिभासियाई, अध्याय 31| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org