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प्रमा की नयी परिभाषा
प्रो. संगमलाल पाण्डेय अध्यक्ष : दर्शन विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद |
| तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन
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जैन दर्शन ने दर्शन और ज्ञान में जो अन्तर किया है वह मुझे पूर्णतया प्रमाणित लगता है। उसने चारित्र पर जो बल दिया है वह उसका सर्वश्रेष्ठ पक्ष है । सम्यक्दर्शन, चारित्र तथा ज्ञान - ये त्रिविध व्यापार जिस ज्ञानराशि को उत्पन्न करते हैं उसे मैं संदर्शन कहता हूँ, उससे संदर्शनशास्त्र का जन्म होता है । स्पष्ट है कि जैनों के यहाँ दर्शन शब्दयर्थक है | 'सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः” इस सूत्र में दर्शन का जो अर्थ है वह उस मोक्षविद्या से भिन्न है जो इसी सूत्र में मोक्षमार्ग से अभिहित की गई है। वस्तुतः समग्र मोक्षमार्ग दर्शन नहीं प्रत्युत संदर्शन है। इस संदर्शन में दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र के घटक हैं । ऐसा जैन दार्शनिकों के विश्लेषण से सिद्ध है ।
अतः मैं एक नई दृष्टि या दार्शनिकधारा का प्रवर्तन करना चाहता हूँ । उसे मैं संदर्शनशास्त्र कहता हूँ । संदर्शन का मूल अभिप्राय समस्त दर्शनों में संप्राप्त बोध या प्रातिभ ज्ञान की व्यापकता को प्रकाशित करना है और उसी के आधार पर एक सम्पूर्ण विचारधारा
निर्माण करना है । वास्तव में संदर्शन त्रिवलयात्मक है । दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र इसके वलय हैं । इसका तात्पर्य यह है कि संदर्शन की उत्पत्ति में दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र की भूमिका है ।
वास्तव में सत्ता की सूचना या उसको बतलाने की शक्ति मात्र ज्ञान में रहती है । दर्शन तथा चारित्र याचितमण्डन न्याय से ही सत्ता बोधक या वाचक हैं अर्थात् उनके द्वारा जिस प्रकार सत्ता का परिचय होता है वह ज्ञान से याचित है, ज्ञान से उधार लिया गया है । ज्ञान भी मात्र ज्ञापक होता है, कारक नहीं। वह विषय की ज्ञापना करता है, उसकी सृष्टि नहीं करता । दृष्टि-सृष्टि नहीं है वह ज्ञप्ति है किन्तु दर्शन तथा चारित्र में कारकत्व की विशेषता है । वे गुणाधान करते हैं। जिस सत् का परिचय ज्ञान से होता है वे उसमें गुणों की सृष्टि करते हैं अथवा उसको वौद्धिक प्रकारों में बाँटते हैं ।
उनके ये व्यापार सत्ता का अन्यथाकरण नहीं कर सकते, उसका विद्रूपण नहीं कर सकते, क्योंकि ज्ञान के किसी प्रकार या सहयोगो में कुद्र पता नहीं है -- उसमें अर्थक्रियाकारित्व भी नहीं है । उसमें केवल अर्थप्रकाशकत्व है । गुण-सृष्टि से इस प्रकाश का ही बोध कराया जाता है वह स्वयं गौण है, मुख्यार्थ नहीं ।
सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र में जो सम्यक्त्व है। उसके कारण मोक्षविद्या जिसे संदर्शनशास्त्र कहा जा रहा है सयम्वत्व
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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