________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - साथ ही भगवान ने बताया एक सामायिक भाव से की सभी अपनी टिकिट से यात्रा करें यात्रा में मंडल के लिए पैसा जाय तो देवलोक के आयुष्य का बंध पड़ता है। एकत्र करने का लालच बिल्कुल न करें। किसी को सामायिक ऐसी अदभत सामायिक की आराधना समढ़ में करना कराने का भाव हो तो शक्ति के अनुसार खर्च कर सकते हैं। मंडल रूप में करना, अनेक नये जीवों के लिए धर्मप्रेरक योग . परतु अपना तरफ से परंतु अपनी तरफ से कोइ माँग नहीं होनी चाहिए। दण्ड - अगर कारणवशात् सामायिक के दिन हाजिर नहीं अपनी सामायिक पुणिया श्रावक के समान बनती जाएगी। अभ्यास हो सकें तो व्यवस्था टूट न जाये तथा दूसरे भी आलस में आकर करते-करते एक दिन ऐसा भी आना चाहिए कि हमारी सामायिक सामायिक का त्याग न करें इस हेतु दण्ड रखा जाता है। दण्ड समभाव की सिद्धि-साधिका बन जाये। रुपयों का ही रखना जरूरी नहीं है। मंडल में सामायिक न हुई हो बुजुर्ग एवं मंडल के अग्रजनों का फर्ज बन जाता है कि वे तो कारण टल जाने पर उपाश्रय में आकर सामायिक करें एवं स्वयं ऐसी सुंदर सामायिक करें, जिससे बाल एवं नये धर्म में साथ में 4 पक्की माला या एकासणा या साधुपद के 27 खमा जड़ने वाले जीवों पर उसका प्रभाव पडे। याद रखें कि मंडल में खड़े-खड़ दे, या 2 रु. फाइन भरे। हाजिरी, प्रभावना, यात्रा एवं दण्ड आदि विषयों को लेकर कभी इस प्रकार शांत चित्त से की गई आराधना अनेक भव्य विवाद नहीं होना चाहिए। जीवों के लिए अनुमोदना एवं सम्यक्त्व का निमित्त बनती है। हाजिरी - इसका प्रयोजन व्यवस्था है, अनव्यस्था नहीं। प्रत्येक छोटे - बड़े जैनसंघों में इस प्रकार के सामायिक मंडल जो रत्नत्रयी के प्रचारक एवं प्रभावक बन सकें, परम आवश्यक प्रभावना - इसका प्रयोजन आराधकों की अनुमोदना है, हैं। अपने संघ के अनरूप महीने में प्रति येषमी चतर्दशी जबर्दस्ती नहीं। विशेष निर्जरा के इच्छुक प्रभावना कर सभी शुक्ल पंचमी आदि सामायिक रख सकते हैं। आराधकों के सामायिक का लाभ उठा सकते हैं। सभी संघों में इस प्रकार के विवेक पूर्ण सामायिक मंडलों यात्रा - सामायिक मंडल में कभी यात्रा का आयोजन / की खूब स्थापना हो एवं आराधना / दर्शन-शुद्धि के लिए किया जाय तो उसमें विशेष ध्यान रखें कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org