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________________ पुरातत्त्व मीमांसा १७६ 乐像 हासिक अथवा आद्य-ऐतिहासिक सामग्री में यह सबसे अधिक प्राचीन सामग्री है। इस सामग्री की प्राप्ति से भारतीय इतिहास का प्राचीनतम समय कोई ५००० वर्ष से भी अधिक पुरातन माना जाने लगा है। हड़प्पा और मोहें-जो-दड़ो में जो प्रागैतिहासिक अवशेष मिले हैं उनका विश्लेषण करने पर पुराविदों का अभिमत बना है कि ये अवशेष किसी ऐसे-जन समूह विशेष से सम्बन्धित हैं, जो आर्यों के भारत में आने के पूर्व, उस प्रदेश में निवास करता था । सिन्धु नदी के निकटस्थ प्रदेश में इन अवशेषों की प्राप्ति होने से विद्वानों ने इसको 'सिन्ध सभ्यता' या 'सिन्ध संस्कृति' के नाम से आलेखित करना उचित माना है। इस सिन्धु सभ्यता की खोज से भारत के प्रागैतिहासिक अथवा आद्य-ऐतिहासिक समय के बारे में अनेक नये मन्तव्य और नये ज्ञातव्य प्रकाश में आ रहे हैं। देश और विदेश के अनेक विद्वानों द्वारा इस विषय पर अनेक बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखे गये हैं और लिखे जा रहे हैं। पर यह सारा विषय, अभी तक अनुमान प्रमाणाधीन है। निश्चित तथ्यज्ञापक कोई वस्तु प्रस्तुत नहीं हो सकी है । मोहे-जो-दड़ो में कुछ ऐसी सामग्री भी उपलब्ध हुई है जिस पर संकेतात्मक कुछ रेखाचिन्ह अंकित हैं। पुराविद् इन चिन्हों को किसी लिपि विशेष के संकेत मान रहे हैं। एक प्रकार की कोई चित्रलिपि के द्योतक ये संकेत समझे जाते हैं। देश और विदेश के कई विद्वानों ने इस लिपि के संकेतों का रहस्योद्घाटन या अर्थ ज्ञान प्राप्त करने के भी नाना प्रकार के प्रयत्न किये हैं। पर उसमें सर्वसम्मत सफलता अभी तक किसी को प्राप्त नहीं हुई है। और जब तक इस लिपि का निर्धान्त ज्ञान न हो जाय तब तक इस विषय पर निश्चयात्मक मन्तव्य प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, यह स्वाभाविक है । पर इसमें तो कोई शंका की बात नहीं है कि सिन्धु सभ्यता की शोध ने भारत के प्राचीन इतिहास की कालमर्यादा को कई हजार वर्ष पूर्व प्रस्थापित कर दिया है। इस प्रकार पिछले ३०-३५ वर्ष दरम्यान भारत के पुरातात्त्विक संशोधन के विषयों में 'सिन्धुसभ्यता' का आविष्कार सबसे महत्व का विषय बना है। इस 'सिन्धु सभ्यता' की खोज का क्षेत्र भी दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । मोहें-जो-दड़ो और हड़प्पा (जो अब तो भारत के अधिकार प्रदेश में भी नहीं रहे और पाकिस्तान के आधीन हो गये हैं) के अतिरिक्त, पंजाब के अम्बाला जिले में रूपड़ नामक स्थान में, तथा सौराष्ट्र (गुजरात) के रंगपुर नामक स्थान में भी 'सिन्धु सभ्यता के सूचक पुरातत्त्व अवशेष प्राप्त हुए हैं। राजस्थान के बीकानेर प्रदेश में भी पुरातन नामाव शेष घग्घर नदी के तीरस्थ भूभाग में 'सिन्धु सभ्यता' के परिचायक अवशेष उपलब्ध होते जा रहे हैं। भारत अब सर्व प्रभुत्वसम्पन्न महागणराज्य है। संसार में इसकी प्रतिष्ठा दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। विश्व के सभी लोग हमारे देश की प्राचीन संस्कृति के बारे में अधिकाधिक रुचि और जिज्ञासा रख रहे हैं । १६२० में भारत का सरकारी पुरातत्त्व विभाग (आर्कियॉलॉजिकल डिपार्टमेंट) विदेशी सत्ता के नियन्त्रण में था। उस समय इसके कार्यकलाप के विषय में कोई विशेष आशाजनक बात कहने में, हमें वैसा उत्साह नहीं था। अतः इस बात को लक्ष्य कर हमने ऊपर उल्लिखित यह वाक्य कहा था कि 'जब इस विषय पर अपना कुछ अधिकार होगा तभी इसका विवेचन किया जायेगा' । उक्त वाक्य लिखते समय (१९२० में) यह कोई कल्पना नहीं थी, कि हमें अपने ही जीवनकाल में ऐसा सुदिन भी ansamwamanuarAAAAMANAANAADAANIMARAirABADASHIANAAJanamaAamirmikAILANGANA आचाप्रवभिआचार्यप्रवरभिः श्राआनन्दग्रन्थश्राआनन्दान्थ५.2 NiravinviviwrnNK.yrAVyavirneyNTAAVATIKATA rrrrrrrrrrrrr Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211365
Book TitlePuratattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZ_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf
Publication Year1975
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size3 MB
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