________________ प्राचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ श्रागाद्वादशभिर्लक्षैः वृतो वैमानकैः सुरैः।। सनत्कुमारः सुमानो विमानस्थः प्रभो पुरः / / 2 / / अहो भविक लोको धर्मार्थसार्थको द्वादशव्रत पालकः सावधानतया श्रूयतां / अहो! पुण्यप्रभावकु श्रावकु सावधान थिका सांभलउ। हूंबार लक्ष विमान तणउ अधिपति स्वामी अनेकि देव देवी तणे परिवारि परिवर्यउ हुँतउ ईणई जंबूद्वीप दक्षिण भरतार्द्धि मधिमखंडि गोहिलवाडि देशि राज श्री सारंगदेव तण राजि ॥१॥छ॥ माहेन्द्राधिपतिः सुरासुरव्रतो संसेव्यते स्वर्गम् / लक्षाष्टाधिप संश्रितो सुरवधू संवीज्यते...चारै / / इत्थं वीरमहोत्सवं च विधिना ज्ञात्वा हरि संस्मृन् / श्रीवत्सांकित नाम देवसदनं हेमं विमानं श्रितं // 1 // माहेन्द्राष्ट विमाने लक्ष्यैर्युक्तो महर्द्धिभिः। श्री वत्साख्य विमानेन प्रभो रम्यएर्णमागतम् / / 2 / / METERANA - MA: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org