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________________ पाश्चात्य विद्वानों का जैनविद्या को योगदान ५७६ विजय एवं मुनि जिनविजय, पं० दलसुख भाई मालवणिया आदि विद्वानों के कार्यों को इस क्षेत्र में सदा स्मरण किया जावेगा । ******* विदेशों में भी वर्तमान में जैनविद्या के अध्ययन ने जोर पकड़ा है। पूर्व जर्मनी में फ्री युनिवर्सिटी बर्लिन में प्रोफेसर डा० क्लोस ब्रहन (Klaus Bruehu ) जैन लिटरेचर एण्ड माइथोलाजी, इंडियन आर्ट एण्ड इकोनोग्राफी का अध्यापन कार्य कर रहे हैं। उनके सहयोगी डा० सी० बी० त्रिपाठी बुद्धिस्त जैन लिटरेचर तथा डा० मोनीका जार्डन जैन लिटरेचर का अध्यापन कार्य करने में संलग्न हैं। पश्चिमी जर्मनी हमबर्ग में डा० एल० आल्सडार्फ स्वयं जैनविद्या के अध्ययन-अध्यापन में संलग्न हैं । उत्तराध्ययननियुक्ति पर कार्य कर रहे हैं। उनके छात्र श्वेताम्बर एवं दिगम्बर जैन ग्रन्थों पर शोध कर रहे हैं। प्राकृत भाषाओं का विशेष अध्ययन बेलजियम में किया जा रहा है। वहाँ पर डा० जे० डेल्यू० 'जैनिज्म तथा प्राकृत' पर, डा० एल० डी० राय 'क्लासिकल संस्कृत एण्ड प्राकृत' पर प्रो० डा० आर० फोहले 'क्लासिकल संस्कृत प्राकृत एण्ड इंडियन रिलीजन' पर तथा प्रो० डा० ए० श्चायें 'एशियण्ट इंडियन लेंग्वेजेज एण्ड लिटरेचर - वैदिक, क्लासिकल संस्कृत एण्ड प्राकृत' पर अध्ययन-अनुसन्धान कर रहे हैं।" इसी प्रकार पेनीसिलवानिया युनिवर्सिटी में प्रो० नार्मन ब्राउन के निर्देशन में प्राकृत तथा जैन साहित्य में शोधकार्य हुआ है । इटली में प्रो० डा० वितरो विसानी एवं प्रो० ओकार बोटो (Ocear Botto) जैन विद्या के अध्ययन में संलग्न हैं। आस्ट्रेलिया में प्रो० ई० फाउल्नर वेना (E. Frauwalner Viena) जैनविद्या के विद्वान हैं। पेरिस में प्रो० डा०] मौत रेनु (Lous Renou), रोम में डा० दुची (Tachi) तथा जार्जिया (Georgia) में डा० बाल्टर वार्ड ( Walterward) भारतीय विद्या के अध्ययन के साथ साथ जैनिज्म पर भी शोध कार्य में संलग्न हैं ।" जापान में जैनविद्या का अध्ययन बौद्धधर्म के साथ चीनी एवं तिब्बतन स्रोतों के आधार पर प्रारम्भ हुआ । इसके प्रवर्तक थे प्रो० जे सुजुकी (J. Suzuki) जिन्होंने जैन सेकंड बुक्स' के नाम से (Jainakyosciten ) लगभग २५० पृष्ठ की पुस्तक लिखी । वह १९२० ई० में 'वर्ल्डस सेक्रेड बुक्स' ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्रकाशित हुई । " सुजुकी ने 'सत्यार्थभिगम सूत्र', 'योगशास्त्र' एवं 'कल्वसूत्र' का जापानी अनुवाद भी अपनी भूमिकाओं के साथ प्रकाशित किया। जैन विद्या पर कार्य करने वाले दूसरे जापानी विद्वान तुहुकु (Tohuku) विश्वविद्यालय में भारतीय विद्या के अध्यक्ष डा० ६० कनकुरा (E. Kanakura ) हैं इन्होंने सन् १९३१ में प्रकाशित हिस्ट्री आफ स्प्रिचुअल सिविलाइजेशन आफ एसि यण्ट इंडिया के नवें अध्याय में जंनधर्म के सिद्धान्तों की विवेचना की है। तथा 'द स्टडो आफ जैनिज्म' कृति १९४० में आपके द्वारा प्रकाश में आयी । १९४४ ई० में तत्त्वार्थधिगमसूत्र एवं न्यायावतार का जापानी अनुवाद भी आपने किया है " बीसवीं शताब्दी के छठे एवं सातवें दशक में भी जैनविद्या पर महत्त्वपूर्ण कार्य जापान में हुआ है। तेशो (Taisho) विश्वविद्यालय के प्रो० एस० मस्सुनामी (S. Matsunami) ने बौद्धधर्म और जैनधर्म का तुलनात्मक अध्यन प्रस्तुत किया है । 'ए स्टडी आन ध्यान इन दिगम्बर सेक्ट' (१९६१) 'एथिक्स आफ जैनिज्म एण्ड बुद्धिज्म' (१९६३) तथा इसिमासियाई (१९६६) एवं 'सानियत' (१९६८) का जापानी अनुवाद जैनविद्या पर आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं । सन् १६७० ई० में डा० एच० उइ (H. Ui) की पुस्तक 'स्टडी आफ इंडियन फिलासफी' प्रकाश में आयी । उसके दूसरे एवं तीसरे भाग में उन्होंने जैनधर्म के सम्बन्ध में अध्ययन प्रस्तुत किया है। Jain Education International टोकियो विश्वविद्यालय के प्रो० डा० एच० नकमुरा (H. Nakamura ) तथा प्रो० यूतक ओजिहारा (Yotak Ojihara ) वर्तमान में जनविद्या के अध्ययन में अभिरुचि रखते हैं । उनके लेखों में जैनधर्म का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।" बी अत्सुशी उनो (Atsush Uno ) भी जैनविद्या के उत्साही विद्वान् है। इन्होंने वीतरागस्तुति (हेमचन्द्र ), प्रवचनसार, पंचास्तिकायसार, तथा सर्वदर्शनसंग्रह के तृतीय अध्याय का जापानी अनुवाद प्रस्तुत किया है। कुछ जैनधर्म सम्बन्धी लेख भी लिखे हैं । सन् १९६१ में 'कर्म डॉक्ट्राइन इन जैनिज्म' नामक पुस्तक भी आपने लिखी है । ५२ पाश्चात्य विद्वानों द्वारा जनविद्या पर किये गये कार्यों के इस विवरण को पूर्ण नहीं कहा जा सकता । बहुत से विद्वानों और उनके कार्यों का उल्लेख साधनहीनता और समय की कमी के कारण इसमें नहीं हो पाया है। फिर भी पाश्चात्य विद्वानों की लगभग लगन, परिश्रम एवं निष्पक्ष प्रतिपादन शैली का ज्ञान इससे होता ही है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211353
Book TitlePashchtya Vidwano ka Jain Vidya ko Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size956 KB
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