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________________ वि.सं. १६४४ में जिनचन्द्र सूरि द्वारा रचित शत्रुंजय गिरि रास में चांपानेर श्रीसंघ का उल्लेख आया है । वह इस प्रकार है: —— विक्रमपुर, मंडोवर, सिन्धु जैसलमेर । सिरोही जालोरनs, सोरठी चांपानेर ॥ २२ ॥ वि.सं. १५४१ में सोमचारित्र गणि ने गुरुगुण रत्नाकर काव्य की रचना की थी। उसमें उन्होंने मांडवगढ़ के वेल्लाक नाम के संघपति का वर्णन किया है। इस संघपति ने तपागच्छ के सुमति सुन्दर आचार्य की प्रेरणा से ईडरगढ़, जीरावला, आबू, राणकपुर और पावागढ़ का छ'रीपालित संघ निकाला था । संघ एक तिहां आविया, भेटण विमल गिरिन्द । लोकताणी संख्या अनंत, साथे गुरु जिनचन्द ॥ २३ ॥ वि.सं. १५०८ में प्राग्वाट सार्दूल ने तपागच्छ के रत्नशेखर सूरि के द्वारा अंजनशलाका कृत २४ तीर्थंकरों की प्रतिमाओं में से दो प्रतिमाओं को चांपानेर-पावागढ़ में स्थापित किया गया था । अकबर प्रतिबोधक तपानच्छ के सुप्रसिद्ध आचार्य श्री हीरसूरिजी के प्रमुख शिष्य आचार्य श्रीसेन सूरिजी अपने गुरु की आज्ञा लेकर वि.सं. १६३२ में चांपानेर पधारे थे। वहां जसवन्त नाम के श्रेष्ठी ने एक मंदिर निर्मित करवाया था उसकी अंजनशलाका-प्रतिष्ठा आचार्य श्री सेन सूरिजी के द्वारा हुई थी । ४८ वि.सं. १७२१ में कवि लक्ष्मी रत्न ने क्षेमा के रास की रचना की थी। उसमें चांपसी मेहता और मुहम्मद बेगढ़ा का वर्णन आया है जो निम्न लिखित है Jain Education International गुर्जर देश छे गुणनीलो, पावा नामे गढ़ वेसणो । मोटा श्री जिन तणा प्रासाद सरग सरीशुं माडे वाद ॥ १ ॥ वसे सहेर तलेटी तासं चांपानेर नामे सुविलास । गढ़ मढ़ मंदिर पोल प्रकाश सप्त भूमि मां उत्तम आवास ॥२ ॥ वरण अढार त्यां सुषि वसे, शोभा देषि मनसु लसें । वेपारी नी नही रे मणा, सात से हाट सरइयां तणा ॥४ ॥ पातसाह तिहां परगड़ो राज्य करे मेम्मद बेगड़ो । श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211351
Book TitlePavagadh Tirth ki Aeitihasikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandrasuri
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth
File Size443 KB
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