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________________ पालि-भाषा के बौद्ध ग्रन्थों में जैन धर्म पालि सूत्रों में जैन धर्म के अनुयायियों का निगण्ठपुत्त, निगण्ठ तथा निगण्ठसावक शब्द से उल्लेख किया गया है । उस सम्प्रदाय के महिलावर्ग के लिए भी निगराठी' शब्द आया है। कतिपय बौद्ध सूत्रों में बुद्धकालीन छह अन्य तैर्थिकों का परम्परागत ढंग से वर्णन मिलता है। उसमें नातपुत्त का नाम भी शामिल किया गया है । उन सब के नाम के साथ निम्नलिखित विशेषण लगाये जाते हैं: “संघी चेव गणी च, गणाचरियो, आतो, यसस्वी, तित्थकरो, साधुसम्मतो बहुजनस्स, रसञ्जू, चिरपब्बजितो, अद्धगतो, वयो अनुप्पत्तो२ " अर्थात् संघस्वामी, गणाध्यक्ष, गणाचार्य, ज्ञानी, यशस्वी, तीथेकर, बहुत लोगों से संमानित, अनुभवी, चिरकाल का साधु, वयोवृद्ध । इनमें 'अद्धगतो' और वयो अनुपत्तो, इन दो विशेषणों से कुछ विद्वानों का अनुमान है कि अन्य तैर्थिकों के समान महावीर भी बुद्ध से आयु में बड़े थे और उस समय तक काफी वृद्ध थे। साथ ही उनका यह अनुमान है कि दीघनिकाय के संगीति पर्याय एवं पासादिक सुत्तों व मज्झिमनिकाय के सामगामसुत्त के कथनानुसार महावीर का निर्वाण भी बुद्ध से पहले हुअा था; पर इस संबंध में इतना ही कहना है कि जर्मन विद्वान् प्रो. याकोबी ने यह सिद्ध कर दिया है कि महावीर का निर्वाण बुद्ध के निर्वाण के पीछे हुआ है। उन के मतानुसार वज्जि-लिच्छिवियों का अजातशत्रु कुणिक के साथ जो युद्ध हुआ था वह बुद्ध के निर्वाण के बाद और महावीर के जीवनकाल में हुआ था । यद्यपि वज्जि और लिच्छिवी गणों का वर्णन दोनों सम्प्रदाय के ग्रन्थों में मिलता है पर तथोक्त युद्ध का वर्णन केवल जैनागमों में ही मिलता है, बौद्धागमों में नहीं। इतना ही नहीं, इन दोनों महापुरुषों की आयु को देखने से यह मालूम होता है कि महावीर बुद्ध से आयु में छोटे थे। बुद्ध निर्वाण के समय ८० वर्ष के थे जबकि महावीर ७२ वर्ष के।। साथ ही एक और बात यह है कि महावीर द्वारा स्वतंत्र रूप से धर्मोपदेश प्रारम्भ करने के पहले ही बुद्ध ने अपना धर्ममार्ग स्थापित करना शुरू कर दिया था। जो हो, पर उक्त अनेक विशेषणों में अन्त के दो विशेषण-अद्धगतो वयो अनुप्पत्तो-पालिसूत्रों में भी सन्देह की दृष्टि से देखे गये हैं और आश्चर्य है कि कुछ सूत्रों-महासकुलदायी (म. नि.) तथा सभियसुत्त (सुत्तनियात) में ये दो विशेषण नहीं पाये जाते । निगण्ठ नातपुत्तके साथ अन्य विशेषणों का समर्थन जैन आगमों से भलीभांति होता है। उपालि सुत्त के निगएठ, निगएठी शब्द से मालूम होता है कि महावीर के संघ में स्त्रियों की भी प्रव्रज्या होती थी। भगवान् महावीर के निर्वाण को सूचित करने वाले कतिपय तथोक्त पालिसूत्रों में लिखा है कि "जिस समय निगण्ठ-नातपुत्त की मृत्यु पावा में हुई थी, उस समय निगण्ठों में फूट होने लगी थी, दो पक्ष हो गये थे...एक दूसरे को वचन रूपी बाणों से बेधने लगे, मानो निगएठों में वध (युद्ध) हो रहा था, निगण्ठ नातपुत्त के जो श्वेतवस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य थे, वे भी निगण्ठ के वैसे दुराख्यात, दुष्प्रवेदित, अप्रतिष्ठित, आश्रयरहित धर्म में अन्यमनस्क हो खिन्न और विरक्त हो रहे थे।" इस वर्णन से यह मालूम होता है कि महावीर की मृत्यु पावा में हुई थी तथा उनके बाद ही संघभेद होने लगा था। इस कथन में भगवान् महावीर का निर्वाण पावा में होना तो जैनागमों से समर्थित है। यह पावा जैन-बौद्ध आगमों के अनुसार मल्लों की पावा थी जो कि वर्तमान गोरखपुर जिले में अनुमानित है। पर संघभेद की बात उस प्रारम्भिक काल में जैन ग्रन्थों से समर्थित नहीं होती। जैन मान्यता के अनुसार भगवान् महावीर के निर्वाण के दो १. मज्झिमनिकाय, उपालिसुत्त । २. दीघनिकाय, सामञफलसुत्त। ३. वीरसंवत् और जैन कालगणना, भारतीय विद्या, सिंधीस्मारक, पृष्ठ १७७ । ४. दीघनिकाय, संगीतिपर्याय एवं पासादिक सुत्त; मज्झिमनिकाय, सामगामसुत्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211349
Book TitlePali Bhasha ke Bauddh Grantho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherZ_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf
Publication Year1956
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Religion
File Size595 KB
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