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पिछले दिनों जनवरी-फरवरी ७१ में फिनलैण्ड देशके निवासी डॉ० पारपोला दिल्ली आये हुए थे । उनके विषय में सुना गया, कि उन्होंने मोइन्जोदड़ो' और हड़प्पा लिपि व भाषाको समझने के लिए पर्याप्त प्रयत्न किया है। डॉ० महोदयका यह दावा मालूम हुआ कि उक्त लिपि व भाषाको समझने में उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली है । इसी धारणाको स्पष्ट कर लेनेके लिए केन्द्रीय पुरातत्त्व अनुसंधान विभागके भवन में उनके दो प्रवचन हुए, एक दिनांक १-२-७१ को, तथा दूसरा ४-२-७१ को ।
पाणिनिकाल एवं संस्कृत में द्विवचन
श्री उदयवीर शास्त्री, गाजियाबाद
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गाजियाबाद निवासी श्री कैलाशचन्द्र वर्माके सहयोगसे पहले प्रवचनमें सम्मिलित होनेका मुझे सुअवसर प्राप्त हो सका । डॉ० पारपोलाका कहना है कि, मोइन्जोदड़ो और हड़प्पाकी लिपि व भाषाका किसी आर्य लिपि व भाषासे कोई सम्बन्ध न होकर द्रविड़ लिपि ब भाषासे सम्बन्ध है । आर्योंकी किसी लिपि व भाषाका प्रसार भारतमें आर्योंके कहीं बाहरसे यहाँ आनेपर हुआ । उनके विचारसे आर्योंके भारतमें आनेका काल ईसापूर्व तेरह सौ वर्षसे सत्रह सौ वर्षके अन्तरालमें है । उससे पूर्व यहाँ द्रविड़ोंका निवास था, आर्योंने आकर उन्हें खदेड़ा, और इस भूभागपर अपना अधिकार जमा लिया ।
लिपि व भाषासे सम्बन्ध है, अपने इस साध्यको सिद्ध करनेके लिए प्राचीन द्रविड़ लिपिके उत्कीर्ण लेखोंमें द्विवचनका प्रयोग देखा जाता भी द्विवचनका प्रयोग है, संसारकी अन्य आर्यकुलकी भाषाओं में केवल भारतीय आर्योंकी संस्कृत भाषा में द्विवचनका प्रयोग है, ईसापूर्व तब उन्होंने यहाँकी प्रचलित भाषा द्रविड़ से भाषामें मूलरूपसे द्विवचनकी मान्यता
उक्त लिपि व भाषाका द्रविड़ डॉ० पारपोलाने प्रमाण प्रस्तुत किया। है, मोइन्जोदड़ो व हड़प्पाकी भाषा में द्विवचनका प्रयोग नहीं देखा जाता । सत्रह सौ वर्षके अनन्तर कालमें जब आर्य बाहरसे भारतमें आये, अपनी भाषामें द्विवचन उपाहरण ( BORROW ) किया । मोइन्जोदड़ो आदिकी भाषाका द्रविड़ भाषासे सम्बन्ध समझने में पर्याप्त प्रबल प्रमाण है ।
विचार करना चाहिए, इस धारणा में सचाई की सम्भावना कहाँ तक है। डॉ० पारपोलाके भाषण के अनन्तर कहा गया कि इस विषय में किसीको अन्य वक्तव्य हो, तो कह सकते हैं ।
पुरातत्त्व अनुसन्धान विभागके निदेशक डॉ० बी० बी० लाल महोदयने प्रथम इस अंशपर प्रकाश डाला, कि द्रविड़ भाषाके प्राचीन उत्कीर्ण लेखोंमें द्विवचनके प्रयोगको इस दिशा में प्रमाणरूपसे प्रस्तुत करना अत्यन्त शिथिल है, कारण यह है, कि द्रविड़ भाषाके अभी तक उपलब्ध लगभग ब्यालीस अभिलेखों में से केवल एक स्पष्ट और दूसरे एकमें अस्पष्ट द्विवचनका प्रयोग उपलब्ध है, इतना अत्यल्प प्रयोग द्रविड़ भाषामें मौलिक रूपसे द्विवचनके प्रयोगको मान्यताके लिए उपयुक्त गवाही नहीं है । यह अधिक सम्भव है, द्रविड़ भाषाके किसी अभिलेखमें अन्यत्र से यह उधार लिया गया हो ।
इस विषय में अपने विचार अभिव्यक्त करनेके लिए मुझे भी अवसर प्रदान किया गया । उन्हीं भावोंको यहाँ लिपिबद्ध करनेका प्रयास I
१. इसका उच्चारण 'मोहनजोदड़ो' अशुद्ध है । 'दड़ो' या 'दाड़ो' दो ढेरको कहते हैं । इधर भाषा में भी ढेरको 'दड़ा' कहते हैं । 'जो' छठी विभक्तिका चिह्न है । 'मोइन' का अर्थ है - मरे हुए। पूरे पदका अर्थ है - 'मरे हुओं का ढेर ' ।
इतिहास और पुरातत्त्व : १३७
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