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________________ तथा दूसरी राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्लीमें सुशोभित हो रही है। लगभग एक-सी ये दोनों मूर्तियाँ कला एवं सुन्दरताकी दृष्टिसे विश्वविख्यात हैं ।। ये प्रतिमाएँ श्वेत संगमरमरसे बनी हैं। इनमें चतुर्भुजी सरस्वती देवी त्रिभंग मुद्रामें एक कमलपर. खड़ी दिखाई गई है। देवी अपने ऊपरवाले हाथोंमें कमल तथा पुस्तक और नीचेवाले हाथोंमें अक्षमाला तथा कमण्डलु लिए है। देवीके सिरपर रत्नजटित सुन्दर मुकुट है, कानोंमें कुण्डल, कण्ठमें हार, हाथोंमें कङ्गन तथा पावोंमें पायल, मणि-मेखलासे सुशोभित साड़ी अपनेमें अनुपम छटा संजोए है। पीठ पर सरस्वतीका वाहन हंस तथा एक मानवीय चित्र उत्कीर्ण हैं तथा सिरके पीछे प्रभामण्डलके दोनों ओर मालाधारी विद्याधर, मुकुटके ऊपर पद्मासनमें 'जिन'की एक लघु प्रतिमा है तथा पैरोंके दोनों ओर हाथोंमें वीणा लिए परिचारिकाएँ खड़ी हैं। पास ही दानकर्ता एवं उसकी पत्नी हाथ जोड़े अंकित किए गए हैं ।२ बीकानेरवाली प्रतिमा सुन्दर प्रभातोरणमें सुसज्जित है जिसपर वाहनारूढ़ परिवारदेवता, गजसवार तथा कायोत्सर्ग मुद्रामें जैनतीर्थकर छोटे-छोटे आलोंमें प्रदर्शित हैं। इसको "The greatest masterpiece of Medieval Indian art" कहा गया है । 3 पल्लके ब्रह्माणी मन्दिरमें ब्रह्माणी देवी तथा उसकी बहिन समझकर पूजी जानेवाली प्रतिमाएँ वास्तवमें जैनतीर्थङ्करोंकी प्रतिमाएँ हैं जिन्हें वहाँके धूर्त पाखण्डी पुजारियोंने घाघरा-ओढ़ना पहनाकर रूप परिवर्तित कर मन्दिरमें स्थापित कर रखा है। इनमें एक स्थानक मत्ति है तथा दूसरी पद्मासनमें, स्थानक तीर्थङ्कर प्रतिमा धोती पहिने है । दोनों पाँवोंके पास एक-एक परिचारककी लघुप्रतिमाएँ हैं। कन्धों के ऊपर दोनों ओर माला लिए उड़ने की मुद्रामें विद्याधर अंकित हैं तथा छत्रके दोनों ओर शुण्डिका ऊपर उठाए एकएक गज प्रतिमा, प्रतिमाके आधारमें दाएं हाथमें शक्ति लिए सुखासनमें एक देवी (?) अंकित है।' पदमासनवाली जिन प्रतिमाके आधार पर दो सिंह अंकित हैं. दोनों ओर स्थानक मुद्राम एक-एक लघु जिन-प्रतिमा तथा उनके ऊपर पदमासनमें एक-एक अन्य लघ प्रतिमा उत्कीर्ण है। छत्रके ऊपर बद्धाअलि एक किन्नर (?) प्रतिमाके दोनों ओर हाथोंमें माला लिए एक-एक विद्याधर अंकित है। (चित्र ८)। यह किसीको ज्ञात नहीं कि ये मूत्तियां कबसे इस मन्दिरमें स्थापित हैं। वर्तमान ब्रह्माणी मन्दिर थेड़के ऊपर स्थित है और १९वीं शताब्दीमें इसका निर्माण हुआ था। जैन सरस्वती प्रतिमाओंसे पल्लूमें एक या एकाधिक सरस्वतीके भव्य मन्दिरोंके अस्तित्वका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है । पल्लू पर मुसलमानोंके किसी आक्रमणमें ये मन्दिर ध्वस्त किए गए होंगे। मत्तियोंको खण्डित किए जानेकी आशंकासे सम्भवतः पुजारियोंने दोनों सरस्वती प्रतिमाओंको कहीं दबा दिया हो, तभी तो ये मूत्तियाँ अखण्डित मिल पाई हैं; यहाँ सरस्वती ( ब्रह्माणी ) के मन्दिरकी सत्ताकी अनुश्रुति बनी रही होगी और कालान्तरमें थेड़से प्राप्त तीर्थंकर-प्रतिमाओंको ही धूर्त पुजारियोंने अपने स्वार्थ एवं भोली जनताको ठगने के लिए देवी रूप देकर स्थापित कर दिया होगा १. Goetz, op. cit., pp. 58 and 85; K. M. Munshi, Saga of Iudian Sculpture, pl. 8; Stella Kramrisch, Sculpture, of India, pp. 184-5, plate XXXIV. 84; Sriv astava, op. cit., p.13, plate 1. २. ब्रजेन्द्रनाथ शर्मा, वही, पृष्ठ ८२-४ तथा ३०-१। ३. Srivastava, op. cit. । ४. संगमरमरकी ऐसी ही एक प्रतिमा नौहरके जैनमन्दिरकी एक दीवारमें जड़ी हई है। १६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211336
Book TitlePallu ki Prastar Pratimaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Handa
PublisherZ_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth
File Size643 KB
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