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________________ ६. बीकानेर संग्रहालयमें हलके लाल-भूरे बालुका प्रस्तरकी गरुड़ासनमें बैठे चतुर्भुज कीचककी दो प्रतिमाएँ भी सम्भवतः पल्लूके शिव मन्दिरका ही भाग हैं। इन मूर्तियोंमें कीचकका “पेट निकला हुआ है और सिर पीछे भोत पर टिका है। कानोंमें कुण्डल, हाथोंमें भुजबन्ध और मणिमाला, सिर पर मुकुट व छाती और पेटके मध्य बन्धा दुपट्टा बड़ा ही मनोहर है।"१ वैष्णव प्रतिमाएँ पल्लसे कुछ वैष्णव प्रतिमाएँ भी मिली हैं जिनका विवरण इस प्रकार है १. एक खण्डित चौखटके मध्य एकके ऊपर एक चार आलोंमें लक्ष्मी अंकित है, चतुर्भुजी इस देवीके ऊपरी दोनों हाथों में कमल दण्ड है तथा निचले दाएं हाथ वरद मुद्रामें एवं निचले बाएँ हाथ कमण्डलु पकड़े हैं जो बाई जंघाओं पर टिके हैं, लक्ष्मी सुखासनमें बैठी है, उसका वाम पाद आसन पर टिका है तथा दक्षिण पाद नीचे भूमि पर । दोनों ओर एक-एक परिचारिका दिखाई गई है। ये परिचारिकाएँ दो विभिन्न मुद्रा-वर्गों में एकके बाद एक बारी बारी से दिखाई गई है ( चित्र ५ )। २. एक स्तम्भ अलंकृत छज्जेमें एक ऊँचे मञ्च पर बैठी चतुर्भुजी देवी जिसके ऊपरी दोनों हाथोंमें सनाल कमल हैं तथा निचला दक्षिण हस्त वरद मद्रामें तथा वामहस्त कमण्डलु पकड़े है, लक्ष्मी प्रतीत होती है । देवी मुकुट, कर्णकुण्डल जो कन्धों पर टिके हैं, भुजबन्ध, मणिबन्ध, कण्ठी तथा कण्ठहार एवं नूपुर पहने सुखासन में विराजमान है । दोनों ओर नत्य मुद्रामें दो-दो परिचारिकाएँ हैं जिनकी शिरःसज्जा तथा वस्त्राभूषण समान है। नीचेकी पट्टिकामें सस्तम्भ आलोंमें और उनके अन्तरिम स्थानोंके बीच वाद्ययन्त्र लिए तथा नृत्य करते हुए आठ स्त्रियोंको विभिन्न मुद्राओंमें अंकित किया गया है। बाएँ हाथकी अन्तिम मूर्ति ऊपरी भागसे खण्डित है। यह पट्टि का मध्य-युगीन संगीतके वाद्य-यन्त्रों तथा तत्कालीन फैशनको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है । ( चित्र ६ )। ३. प्रत्यालीढ आसनमें विष्णुके वाहन गरुड़की भूरे बालुका पत्थरकी यह प्रतिमा जो अपने बाएँ हाथमें एक सर्प पकड़े है तथा दायाँ हाथ सिर पर रखे है पुरुष-रूपमें गरुड़ का एक सुन्दर उदाहरण है। गरुड़ कण्ठहार, भुजबन्ध, कङ्गन एवं अन्य वस्त्राभूषण धारण किए है। पीछेकी ओर कंघी किए बीचमें माँगकी रेखा बनाए बालोंको ऊपर करके फीतेसे बांधा गया है। नासिका कुछ टूट गई है। पंख पीछेको फैले हुए हैं । ग्यारहवीं शताब्दीकी यह मूर्ति पल्लू क्षेत्रकी मध्य-युगीन मूत्तिकलाका एक उत्कृष्ट उदाहरण है ( चित्र ७)। यह प्रतिमा श्री मौजीराम भारद्वाजके द्वारा राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्लीको समर्पित की गई थी और अब यह संग्रहालयकी प्रवेश-द्वारसे लगी वृत्ताकार दीपिकामें प्रदर्शित है। जैन प्रतिमाएं पल्लका नाम भारतके पुरातात्त्विक-मानचित्र पर १९२५-२६ में डा० एल. पी. टैस्सिटरी द्वारा यहाँसे दो जैन सरस्वती मत्तियाँ प्राप्त करने पर आ पाया था। इनमें से एक अब बीकानेर संग्रहालयमें है १. वहीं। २. ब्रजेन्द्रनाथ शर्मा, "राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में मध्यकालीन राजस्थानी प्रस्तर प्रतिमाएं" मरुभारती, अक्तूबर १९६४, पृष्ठ ८४; ' 'Some Medieval Sculptures from Rajasthan in the National Museum, New Delhi", Roop Lekha, vol.xxxv, Nos. 1-2, pp.30-1. इतिहास और पुरातत्त्व : १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211336
Book TitlePallu ki Prastar Pratimaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Handa
PublisherZ_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth
File Size643 KB
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