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________________ अन्य प्रतिमाएँ पल्लसे कुछ ऐसी प्रतिमाएँ भी मिली हैं जिनका सम्बन्ध किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेषसे स्थापित नहीं किया जा सकता। इनमें महत्त्वपूर्ण प्रतिमाएं निम्नांकित हैं 1. एक चतुष्कोण आधार पर खड़े दाढ़ी-मूंछोंवाले बद्धाञ्जलि दानीकी प्रतिमा जिसके सिरपर टोपकी तरहका शिरस्त्राण है, सिरके पीछे प्रभामण्डल है, कण्ठमें हार, भुजाओंमें भुजबन्ध तथा मणिबन्ध है तथा सुन्दर अधोवस्त्र धारण किए हैं। पार्श्व चैत्यसे उद्भूत कमलपर एक छोटी-सी प्रतिमा वाम-स्कन्धके पास सुशोभित है और बद्धाञ्जलि एकापर लघ-प्रतिमा दक्षिण पादके समीप खड़ी है। कंकर-पत्थरसे बनी इस प्रतिमामें इस क्षेत्रको शिल्पकारीकी कलात्मक वास्तविकता तथा कलाकारकी सजनात्मक प्रतिभाकी स्पष्ट झलकी मिलती है। 2. 15" x 71' आकारकी एक प्रस्तर चौखट जिसपर परिचारिकाओं सहित एक स्त्री अपने शिशुको स्तन-पान करा रही है। 3. पालकी में बैठी एक स्त्रीकी प्रतिमा जिसे दो सेविकाएँ उठाए लिए जा रही हैं। पालकीके नीचे एक छोटा-सा बालक कलश लिए जा रहा है। कंकर-पत्थरकी यह छोटी-सी प्रतिमा अपने अत्यन्त जटिल एवं कलात्मक सम्पादनके लिए महत्त्वपूर्ण है। 4. एक अलंकृत आलेमें मुकुट, कर्णकुण्डल, कण्ठहार, भुजबन्ध, मणिबन्ध, घुटनोंसे ऊपरतकका छोटा-सा पारदर्शी अधोवस्त्र तथा घुटनोंसे नीचे तक लटकती हुई माला पहिने, दायाँ हाथ जंघा पर रखे तथा वक्ष तक उठे वामहस्तमें रज्जकी सी आकृतिकी कोई वस्तु पकड़े विभङ्ग मुद्रा में खड़े दानी ( या द्वारपाल ) की कंकर-पत्थरकी यह प्रतिमा भी मूत्तिकारकी कुशलता तथा सृजनात्मक प्रतिभाका परिचय देती है / ( चित्र 9) / 5 एक अलंकृत आलेमें शोभित खण्डित मूत्ति जिसके दोनों ओर विविध प्रकारके वस्त्राभूषण धारण किए तीन-तीन सेवक-सेविकाओंकी खण्डित प्रतिमाएँ हैं सम्भवतः किसी बृहत्स्तम्भका आधार भाग है। वस्त्राभषणोंकी विविधताके लिए यह महत्त्वपर्ण है। ( चित्र 10 ) / इनके अतिरिक्त पल्लसे प्राप्त लगभग 64 वास्तु-शिला-खण्ड जो किसी समय पल्लूके भव्य मन्दिरोंके भाग रहे होंगे श्री मौजीराम भारद्वाज द्वारा संगरिया संग्रहालयको दिए गए थे। इनका विस्तृत विवरण प्राप्त नहीं है। जैन प्रतिमाओंको छोड़ कर अन्य सभी प्रतिमाएँ तथा वास्तु-शिला-खण्ड लाल या भूरे बालुका पत्थरके हैं या पाण्डु वर्ण कंकर-पत्थरके / तिथिक्रमसे इन सब अवशेषोंको दसवींसे बारहवीं शताब्दीके बीच रखा जाता है, अवशेषोंसे स्पष्ट है कि इस समय पल्ल एक समृद्ध एवं महत्त्वपूर्ण कलाकेन्द्र तथा धार्मिक स्थल था। आज अगर पल्लूके बृहत् एवं उच्च थेड़का उत्खनन किया जाय तो निश्चय ही यहाँसे राजस्थानके इतिहास, कला तथा संस्कृति पर नवोन प्रकाश डालनेवाले अनेकानेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त होंगे। 1. B. N. Sharma, "Some Unpublished Sculhtptures From Rajasthan," The Researcher, vol. V-VI ( 1964-65), p. 34, plate XI | 2. Srivastava, op. cit., p. 141 3. यह प्रतिमा श्री मौजीराम भारद्वाज द्वारा सरदारशहरके श्री बभूतमल दूगड़को भेंट दी गई और उन्होंने आगे इसे श्री ओमानन्द जी सरस्वतीको उपहार देकर गुरुकुल संग्रहालय, झज्झर ( हरियाणा ) पहुँवा दिया है। इतिहास और पुरातत्त्व : 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211335
Book TitlePallu ki Prastar Pratimaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Handa
PublisherZ_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf
Publication Year1977
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth Pratima
File Size649 KB
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