________________ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण तिथि भिन्न कैसे हो गई? प्रश्न होता है कि सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की यह तिथि भिन्न कैसे हो गई? निशीथचूर्णि में जिनदासगणि ने स्पष्ट लिखा है कि पर्युषण पर्व पर वार्षिक आलोचना करनी चाहिये। (पज्जोसवनासु वरिसिया आलोयणा दायिवा)। चूँकि वर्ष की समाप्ति आषाढ़ पूर्णिमा को ही होती है, इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा को पर्युषण अर्थात् सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना चाहिए। निशीथभाष्य में स्पष्ट उल्लेख है- आषाढ़ पूर्णिमा को ही पर्युषण करना उत्सर्ग सिद्धान्त है। सम्भवतः इस पक्ष के विरोध में समवायाङ्ग और आयारदशा (दशाश्रतस्कन्ध) के उस पाठ को प्रस्तुत किया जा सकता है जिसके अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के एक मास और बीस रात्रि के व्यतीत हो जाने पर पर्युषण करना चाहिए। चूंकि कल्पसूत्र के मूल पाठ में यह भी लिखा हुआ है कि श्रमण भगवान् महावीर ने आषाढ़ पूर्णिमा से एक मास और बीस रात्रि के व्यतीत हो जाने पर वर्षावास (पर्युषण) किया था उसी प्रकार गणधरों ने किया, स्थविरों ने किया और उसी प्रकार वर्तमान श्रमण निर्ग्रन्थ भी करते निश्चित रूप से यह कथन भाद्र शुक्ल पञ्चमी को पर्युषण करने के पक्ष में सबसे बड़ा प्रमाण है। लेकिन हमें यह विचार करना होगा कि क्या यह अपवाद मार्ग था या उत्सर्ग मार्ग था? यदि हम कल्पसूत्र के उसी पाठ को देखे तो, उसमें यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि इसके पूर्व तो पर्युषण एवम् सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना कल्पता है, किन्तु वर्षा ऋतु के एक मास और बीस रात्रि का अतिक्रमण करना नहीं कल्पता है- 'अंतरा वि य कप्पड़ (पज्जोसवित्तए) नो से कप्पइ तं रयणिं उवाइणा वित्तए।' निशीथचूर्णि और कल्पसूत्र की टीकाओं में भाद्र शुक्ल चतुर्थी को संवत्सरी का उल्लेख निशीथचूर्णि में और कल्पसूत्र की टीकाओं में भाद्र शुक्ल चतुर्थी को पर्युषण या संवत्सरी करने का कालक आचार्य की कथा के साथ जो उल्लेख है वह भी इस बात की पुष्टि करता है कि भाद्र शुक्ल पञ्चमी के पूर्व तो पर्युषण किया जा सकता है किन्तु उस तिथि का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता निशीथचूर्णि में स्पष्ट लिखा है कि 'आसाढ़ पूर्णिमाए पज्जोसेवन्ति एस उसग्गो सेस कालं पज्जोसेवन्ताणां अववातो। अवताते वि सवीससतिरातमासातो परेण अतिकम्मउण वट्टति सवीसतिराते मासे पुण्णे जति वासखेत्तं लब्भति तो रूक्ख हेठावि पज्जोसवेयव्वं तं पुण्णिमाए पञ्चमीए, दसमीए, एवमाहि पव्वेसु पज्जुसवेयव्वं नो अपवेसु अर्थात् आषाढ़ पूर्णिमा को पर्युषण करना यह उत्सर्ग मार्ग है और अन्य समय में पर्युषण करना अपवाद मार्ग है। अपवाद मार्ग में भी एक मास और 20 दिन अर्थात् भाद्र शुक्ल पञ्चमी का अतिक्रमण नहीं करना चाहिये। यदि भाद्र शुक्ल पञ्चमी तक भी निवास के योग्य स्थान उपलब्ध न हो तो वृक्ष के 12 निशीथचूर्णि, संपा0-जिणदासगणि, प्रका0-सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, 1957,3153| Page |8