________________ 29000000 ONOD.00628 0000000000004 10 .00 1582 Places - मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीनः सन्त्वोषधीः। मधु नक्तभुतोऽसो मधुमत्पार्थिवं रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता। मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमान् अस्तु सूर्यः। माध्वीवो भवन्तु नः२८ अर्थात् सर्वतोभावेन पर्यावरण प्रदूषण मुक्त समाज इतना सन्तुष्ट और आनन्दित हो, जिससे प्रत्येक प्राणी यह अनुभव करे, मानों समस्त वायुमण्डल उसके लिए मधु की वर्षा कर रहा है, नदियां मधु की धारा प्रवाहित कर रही हैं, औषधियों से मधु का उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ स्रवण हो रहा है। दिन-रात भी मधुमय हैं, पृथ्वी का कण-कण मधुमय है, धुलोक में स्थित ग्रहमण्डल पिता के समान मधु रूपी स्नेह से सबको आप्लावित कर रहा है। वनस्पति, सूर्य, चन्द्र और गौवें सभी में माधुर्य का वितरण कर रही हैं। क्यों न आज भी हम सकल लोक को पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त कर इसी मधुमय सागर में अवगाहन करें। पता: साधना मन्दिर 90, द्वारिकापुरी मुजफ्फरनगर (उ. प्र.)२५१ 001 20 0 00200500-200RDABHO6000000 RGSVON- OAR सन्दर्भ स्थल 1. पर्यावरण अध्ययन, पृ. 11 (डॉ. एस. सी. बंसल, डॉ. पी. के. शर्मा) 2. अग्ने गृहपतये स्वाहा सोमाय वनस्पतये स्वाहा, मरुतामोजसे स्वाहा, इन्द्रस्थेन्द्रियाय स्वाहा पृथिवी माता मा हिंसी, मो अहं त्वाम् यजुर्वेद, 10/23 // 3. पद्मपुराण 4/48, आदिपुराण 20/261-265, हरिवंशपुराण 2/216-221 4. आचारांग 1-27, 1-34) 5. ऋषभदेव-न्यग्रोध, अजितनाभ-सप्तपर्ण, सम्भवनाथ-शाल, अनन्तनाथ पीपल इत्यादि। द्रष्टव्य तिलोयपण्णात्ति 4,604-605, 916-918, 934-940 6. (क) स कीचकर्मारुतपूर्णरन्त्रैः कूजद्भिरापादितवंशकृत्यम्। शुश्राव कुलेषु यशः स्वमुच्चैरुद्गीयमानैः वन देवताभिः रघुवंश॥२ (ख) उत्तररामचरित 2/29 7. आदिपुराण 3/22-54, हरिवंशपुराण 5/167, पाण्डवपुराण 4/213, तत्त्वार्धसूत्र 3/37 / 8. रघुवंश 14/48, नैषधीयचरित 1/15, पंचतंत्र-मित्रभेद, पृ. 2 9. क्षीमं केनचिदिन्दुपाण्डु तरुणा मांगल्यमाविष्कृत निष्ठ्यूतरचरणोपरागसुभगो लाक्षारसः केनचित्। अन्येभ्यो वनदेवताकरतलैरापर्वभागोत्थितैदत्तान्याभरणानि नः किसलयोद्भदेप्रतिद्वन्द्विभिः // अभिज्ञान शाकुन्तल / / 4/5 10. आदिपुराण 22/200-201 11. शकुन्तला-अस्ति मे सोदर स्नेहोऽप्येतेषु। अभिज्ञान शाकुन्तल, प्रथम अंक पृ. 43 12. (क) अमुं पुरः पश्यसि देवदारुं पुत्रीकृतोऽसी वृषभध्वजेन। यो हेमकुम्भस्तननिःसृतानां स्कन्दस्य मातुः पयसा रसज्ञः रघुवंश // 2/36 (ख) कुमारसम्भव 5/14 13. अभिज्ञान शाकुन्तल 4/9 14. जैनाचार्यों के संस्कृत पुराणसाहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन पृ. 209 / 15. अमृतोऽपस्तरणमसि, अमृतापिधानमसि। आश्वलायन -गृह्यसूत्र 1/24/21-22 // 16. रान्नो देवीरमिष्टये आपो भवन्तु पीतये। रां योरभि प्रवन्तु नः। -यजुर्वेद 36/12 17. आपो हि ष्ठा मयो भूवस्तान ऊर्जे दधातन। -वही, 36/14 18. यो वः शिवतमो रसः तस्य भाजयतेह नः। वही, 36/15 19. ओं सवित्रा प्रसूता दैव्या आप उन्दन्तु ते तनु। दीर्घायुत्वाय वर्चसे। स-पारस्कर गृह्यसूत्र 2/1/9 20. स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराानिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टर मस्वशरीर संस्कारत्यागाः पञ्च। -तत्त्वार्थसूत्र 77 21. ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। संगात्संजायते कामः कामाक्रोधोऽभिजायते॥ क्रोधाद्भवती सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ -श्रीमद्भगवद्गीता 2/62-63 22. वितर्का हिंसादयः 1.1 1.1 " लोभमोहक्रोधपूर्वकाः मदमध्याधिमात्राः '' इति प्रतिपक्षभावनम्। -योगसूत्र 2/34 23. (क) मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च सत्त्वगुणाधिक क्लिश्यमानावित्यलेषु। -तत्त्वार्थसूत्र 7/11 (ख) मैत्रीकरुणा मुदितोपेक्षाणां सुखदुःख पुण्यापुण्य विषयाणां भावनातश्चित्त प्रसादनम्। -योगसूत्र 1/33 24. आदिपुराण 3/22-24 25. आदिपुराण 16/179, 181-182 26. (क) क्षितिसलिलदहन पवनाभ्यां विफलं वनस्पतिछेद। सरणं सारणमपि च प्रमादचर्या प्रभाषन्ते। -रत्नकरण्डश्रावकाचार 3/34, पृ. 160 (ख) भूखननवृक्षमोट्टनशाद्वलदलनाम्बुसेचनादीनि। निष्कारणं न कुर्याद्दलफलकुसुमोच्चयादीनि च॥ __-पुरुषार्थसिद्धयुपायः, 143 (ग) भूपय पवनाग्नीनां तृणादीनां च हिंसनम्। यावत्प्रयोजन स्वस्य तावत्कुर्यादयं तु यत्॥ -यशस्तिलकचम्पू 7/26 27. मनुस्मृति, 6/46 28. यजुर्वेद 13/27-29 BoadIDO 2090020603300030352600DJanD.DODODOD.000000DDSONand