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'पद्मपुराण' और 'मानस' के राम
to लक्ष्मीनारायण दुबे
जैनाचार्य रविषेण कृत 'पद्मपुराण' का जैन साहित्य में वही स्थान है जो कि हिन्दी साहित्य में 'रामचरितमानस' का | 'पद्मपुराण' सन् ६७८ ई० में लिखा गया जब कि 'रामचरितमानस' सन् १५७४-७७ के मध्य । सम्राट् हर्ष तथा हर्षोत्तरकालीन परिस्थितियाँ ही रविषेणके समय के परिवेशका निर्माण करती हैं । हर्षने ४० वर्ष तक शासन किया था। उनकी मृत्यु सन् ६४८ में हुई थी । रविषेणके समय में हुआनचुआंग एवं इत्सिंग नामक यात्रियोंने हमारे देशकी यात्रा की थी और अपने महत्वपूर्ण वृत्तांत लिखे थे । तुलसीदास ( सन् १५३२-१६२३ ) के समयमें अकबर और जहाँगीर सम्राट् थे ।
आचार्य रविषेण तथा गोस्वामी तुलसीदास दोनों ही रामचरितकी गरिमाका गायन करते हैं । दोनोंने रामकथाकारों को अपनी प्रणति प्रेषित की है । दोनों ही रामाख्यानको प्रश्न अथवा शंकासे स्थापित करते हैं । दोनोंकी महत्त्वपूर्ण कृतियोंमें साम्यकी अपेक्षा वैष म्यके प्रावधानोंका आधिक्य है । दोनों आदिकवि वाल्मीकि के प्रति ऋणी हैं।
दोनों रचनाकारोंका दर्शन एक-दूसरेका विरोधी है। एक वेदनिंदक है तो दूसरा वेदोंके प्रति परम निष्ठावान् । रविषेण जहाँ रामको महापुरुष मानते हुए अपने कर्मके द्वारा मोक्ष प्राप्त करनेवाले भव्य प्राणीके रूपमें निरूपित करते हैं, तुलसी वहाँ उन्हें मर्यादापुरुषोत्तमके साथ ही साथ परब्रह्म निरूपित करते हैं जिन्होंने धर्मके रक्षार्थ अवतार ग्रहण किया। दोनोंके दृष्टिकोणों में मूलभूत अन्तर होनेके कारण दोनोंकी कथाओं में भी पर्याप्त अन्तर आ गया है। रविषेण अष्टम बलभद्र रामके चरित्रको वर्णित करके जैनधर्म की चेतनाको पाठकों तक सम्प्रेषित करना चाहते हैं परन्तु तुलसी 'विधि हरि सम्भु नचावन हारे' पर ब्रह्मरूप श्रीरामका चरित्र गायन करके राम भक्तिका परमोन्नयन करते हैं । रामकथाको जो उदात्त स्थिति तथा गरिमा तुलसीने दी, वह रविषेणसे सम्भव नहीं हो सकी । तुलसीने मर्यादाका पालन किया है परन्तु रविषेण कहीं-कहीं कामोद्दीपन स्थितिको जन्म देते हैं ।
दोनों कृतियोंके नायक श्रीराम हैं । 'पद्मपुराण' में उनका नाम पद्म भी है । रविषेणके राम नौहजार रानियोंके स्वामी तथा मोहाभिभूत हैं परन्तु तुलसी के राम एक पत्नीव्रतधारी, तपस्वी और मोहभंजक हैं ।
दोनोंने रामके व्यक्तित्वको अत्यन्त आकर्षक, मार्मिक तथा प्रभावोत्पादक रूपमें उपस्थित किया है । दोनोंने रामको शक्तिके भण्डार और शीलके अतुलनीय निधानके रूपमें प्रस्तुत तथा चित्रित किया है। 'पद्मपुराण' में तपोवनकी स्त्रियाँ राम-लक्ष्मणको देखकर मतवाली हो जाती हैं परन्तु 'मानस' की ग्रामवनिताएँ मुग्धावस्थाका वरण करती हैं। 'पद्मपुराण' या 'पद्मचरित' में रावणका वध रामके हाथों न होकर लक्ष्मण के द्वारा होता है क्योंकि जैन मान्यतानुसार नारायणके हाथों प्रतिनारायणका वध होता है, बलदेवके हाथों नहीं । राम बलदेव हैं, लक्ष्मण नारायण और रावण प्रतिनारायण । इसी कारण से 'पद्मपुराण' में रामका चरित्र लक्ष्मण के समक्ष दबा-सा प्रतीत होता है ।
शूर्पणखा की नाक काटना, बालिको छिपकर मारना आदि कार्य 'मानस' के राम करते हैं परन्तु 'पद्मपुराण' के राम इनसे स्पष्टतया बचे रहने के कारण, परवर्ती आलोचनाके पात्र नहीं बन सके । 'पद्मपुराण' की
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