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________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण क्रमशः स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु चार इन्द्रियों के विषयभूत चार गुण है जो पुद्गल द्रव्य के है । कर्णेन्द्रियका विषय शब्द है । शब्द गुण नहीं है किन्तु पुद्गल द्रव्य की स्वयं एक पर्याय है। जैनेतर दर्शनों में किन्ही २ ने उसे आकाश द्रव्य का गुण माना है परन्तु वह मान्यता आज विज्ञान द्वारा गलत प्रसिद्ध हुई है । ૧૮ शब्द का आघात होता है । वह आघात सहता है, भेजा जाता है, पकड़ा जाता है अतः गुण न होकर वह स्वयं पुद्गल द्रव्य की एक अवस्था विशेष है । गॅस-अंधःकार-प्रकाश-ज्योति - चांदनी - धूप ये सब पुद्गल द्रव्य के ही नाना रूप है । इन सब में अपने २ स्वतंत्र स्पर्श- -रस- गन्ध-वर्ण गुण है तथा अन्य अनेक गुण है । शुद्ध पुद्गल 'परमाणु रूप ' है । स्कन्ध पर्याय पुद्गल की अशुद्ध पर्याय है । शुद्ध परमाणु स्कन्ध बनने की दुकाई है बिना दुकाई के जैसे संख्या नहीं बन सकती इसी प्रकार बिना परमाणु को स्वीकार किए सारे दृश्यमान जगत् का अभाव होने का प्रसंग आएगा । परमाणु के अनेक उपयोग है । जिससे उसकी सत्ता सूक्ष्म होनेपर भी उससे स्वीकार करना अनिवार्य है । (१) परमाणु स्कंधोत्पत्ति का हेतु है । स्कंध के भेद का अंतिमरूप 1 (२) परमाणु द्वारा अवगाहित आकाश प्रदेश ' प्रदेश' का मापदण्ड है जिससे जीवादि छहो द्रव्यों के प्रदेशों का परिमाण जाना जाता है । (३) एक परमाणु आकाश के एक प्रदेश पर स्थित हो और मंद गति से आकाश के द्वितीय प्रदेश पर जाय तो वह 'समय' का मापदण्ड बन जाता है । (४) एक प्रदेश रूप परमाणु में स्पर्शादि गुण के जघन्य भाव आदि का भी अवबोध किया जाता है अतः वह भाव संख्याका भी बोधक है । फलतः सर्व द्रव्य-सर्व क्षेत्र - सर्व काल और सर्व भावों के अशों का मापक होने से परमाणु अपनी उत्कृष्ट उपयोगिता को सिद्ध करता है । परमाणु में वर्ण रसादि गुण क्रमशः परिणमन रूप होते रहते है जिससे परमाणु एक प्रदेशी होकर के भी गुण पर्याय सहित होने से द्रव्य संज्ञा को प्राप्त है । पुद्गल द्रव्य ही इन्द्रियों द्वारा उपभोग योग्य होता है अतः प्रायः उनके माध्यम से ही जीव के रागादि विकार - परिणाम होते हैं । इस पुद्गल की अवस्था विशेष रूप कार्माण वर्गणाएं ही जीव के साथ संबंध को प्राप्त होती हैं और जीव का विकार रूप परिणमन होता है वही जीव का संसार है । और उससे वियुक्त होने पर जीव का स्वभावरूप परिणमन ही मोक्ष है । अनेक प्रदेशात्मक होने से स्कंध तथा स्कंधरूप परिणमन की योग्यता से परमाणु भी अस्तिकाय संज्ञा को प्राप्त है । इस तरह पुद्गलास्तिकाय का विवेचन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211306
Book TitlePanchastikaya Samaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmohanlal Jain
PublisherZ_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Agam
File Size594 KB
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