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________________ आप आमदेव श्रीआनन्द अन्थ श्री आनन्दव डॉ. फ्र डा० हुकुमचन्द पार्श्वनाथ संगवे, एम. ए., पी-एच. डी. [ संप्रति - प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली ] पंचास्तिकाय में पुद्गल अनादि काल से विश्व को पहचानने की कोशिश हो रही है । अनेक दर्शनों का जन्म हुआ । मनुष्य के मस्तिष्क में जगत् स्रष्टा की कल्पना प्रस्फुटित हुई और जिज्ञासा भी हुई, 'यह जगत् किन तत्वों से निर्मित है । इन्हीं तत्वों का प्रारम्भ और प्रलय कैसा होता है ? और विश्व के पदार्थ को भारतीय दार्शनिकों ने पृथ्वी, अप, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों से निर्मित माना । यूनानी दार्शनिकों ने मिट्टी, जल, अग्नि और वायु इन चार मूल तत्वों को स्वीकार किया तो जैन दार्शनिकों ने षट् द्रव्य का मूलभूत तत्वों में - ( Fundamental realities of universe) विवेचन किया | चार्वाकदर्शन जड़वादी है। उसके मत के अनुसार जड़ ही एक मात्र तत्व है, उससे ही चेतन आत्मा उत्पन्न होता है और मृत्यु के उपरान्त उसका नाश होता है । वह ईश्वर, स्वर्ग, नरक, जीवन की नित्यता और अमूर्त तत्वों को नहीं मानता। बौद्धदर्शन में इस विश्व को चार आर्यसत्य से युक्त समझा गया है। उनका कहना है, 'जो नित्य स्थायी मालूम पड़ता है, उसका भी पतन है। जहाँ संयोग है, वहाँ वियोग है ।" दुनिया की हर चीज अनित्य धर्मों का संघात् मात्र है । उसी का उत्पाद, स्थिति और निरोध होता रहता है।' भवचक्र द्वादश निदान से बना है ।" तत्वों का सविस्तार विचार सौत्रान्तिक मत में हुआ है। 3 Jain Education International वैशेषिक दर्शन के अनुसार द्रव्य गुण, कर्म का आधार और अपने सावयव कार्यों का समवायी कारण है । द्रव्य गुण, कर्म से भिन्न होते हुए भी उनका आधार है । उनके बिना गुण अथवा कर्म नहीं रह सकते | पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा और मन ये नौ द्रव्य हैं । ४ सांख्य में प्रकृति अनादि अनन्त है। प्रकृति में जगत् उत्पत्ति के गुण मिलते । प्रकृति अव्यक्त है ।" प्रकृति और पुरुष के संगोग से ही संसार बनता है । पुरुष भोक्ता है, प्रकृति भोग्या है । पुरुष निष्क्रिय है, प्रकृति सक्रिय है। इसके अनुसार सत्व, रज तथा तम ये तीन गुण विकास में १ भारतीय दर्शन की रूपरेखा - डा० वात्सायन, पृ० ७२ २ वही पृ० ८२ ३ वही पृ० १०० ४ भारतीय दर्शन की रूपरेखा - डा० वात्सायन, पृ० १५७ ५ वही, पृ० १७० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211305
Book TitlePanchastikay me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukumchand P Sangave
PublisherZ_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf
Publication Year1975
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Six Substances
File Size2 MB
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