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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
धर्म की तरह मुक्ति के मंत्र स्वरूप चरणकमलों की धूल से अज्ञानरूपी तम समूह को नष्ट करने वाले सूर्य की तरह तप-तेज-युक्त जसदेवसूरि थे । "
अपने रूप से कामदेव की जीतने वाले तथा मन से सकल गुणों के धारक तथा समस्त लोगों को आनन्दित करने वाले प्रद्युम्नसूर हुए। "
सघन बुद्धि के द्वारा दुर्गम काव्यों को जानने वाले तथा आत्मा की तरह शास्त्रों को जानने वाले एवं मदरूपी कामदेव को खण्डित करने वाले आचार्यत्रवर मानदेव थे।
श्रेष्ठ कीर्ति फैलाने वाले, मनोहर शरीरधारी, महामति कुशल, दर्शन मात्र से जिनेन्द्र प्रवचनों में प्रविष्ट लोगों को आनन्दित करने वाले श्रेष्ठ शास्त्रों के अर्थ को प्रकट करने वाले, सरस्वती के समान मुख में स्थित कुशल वचनों वाले तथा समस्त लोक में विख्यात श्रीदेवसूरि थे ।
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उनके ही गच्छ में उद्योतनसूरि के श्रेष्ठ शिष्य तथा गुणरत्नों के खजाने उपाध्याय अंबदेव हुए ।
पूर्णिमा के चन्द्रमण्डल की तरह सौम्य शरीर एवं संयमित चित्त के धारी श्रेष्ठ मति वाले मुनि चन्द्रसूरि के धर्म-सहोदर देवेन्द्रगणि के द्वारा उनकी अनुमति से उनसे शिष्य के शब्दों द्वारा संक्ष ेप में अक्षरबन्ध ( कथा ) के रूप में यह कथा कही गयी है।
इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्रसूरि की गुरु-परम्परा निम्न प्रकार स्पष्ट होती है
देवसूरि
उद्योतनंमूरि I
उपाध्याय अंबदेव
जसदेवसूरि
(ख) समणगुणदुव्वधरा धारण धोरेय भावमणुपत्तो । सिरिउज्जोयणसूरि सोमत्तणु सोमदिट्ठी व ॥ ८ ॥ १. धम्मो मुत्तिमंत्तो पयपंक्यरेणुनासिय तमोहो ।
जसदेवसूरिनामो, रविव्व तवतेयला जुत्तो ॥ ६ ॥ २. दूर वणिजयमवणो स्वेण, मणेण सयणगुणनितओ । आणं दियसयलजको पवरो पज्जुन्नसूरिवरो ॥ १० ॥ ३. निविमुनिदुग्मम्यो जोवोव्व नायसत्यस्थो । सुरवरो मागदेवोति ॥ ११ ॥ ४. उद्दाम किसिसो मणहरदेहो महामई कुलो। दंसणमेत्तादिय जिणपदयणपविट्ठलोगोवि ॥ १२ ॥ पर्यायवरसत्यत्यो मुहटियसरस्तव्य पदुवयो। सिरिदेवसूरिणामी समत्य लोगंमि विवाओ ।। १३ ।।
मुसुरियमयो,
प्रद्युम्नसूरि
देवेन्द्रगणि ( नेमिचन्द्रसूरि )
सबसे प्रथम देवसूरि हुए। देवसूरि के ४ शिष्य हुए — उद्योतनसूरि, जसदेवसूरि, पद्युम्नसूरि आचार्य मानदेवसूरि । ये चारों समकालीन थे ।
उद्योतनसूरि के उपाध्याय अंबदेव हुए। अंबदेव के देवेन्द्रगण ( नेमिचन्द्रसूरि ) हुए थे ।
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मानदेवसूरि
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