________________ 57 नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन से बच सकते हैं, जो प्राचीनगोत्रीय पूर्वधर भद्रबाहु काश्यपगोत्रीय आशा है जैन विद्या के निष्पक्ष विद्वानों की अगली पीढ़ी इस आर्यभद्रगुप्त और वराहमिहिर के भ्राता नैमित्तिक भद्रबाह को नियुक्तियों दिशा में और भी अन्वेषण कर नियुक्ति साहित्य सम्बन्धी विभिन्न का कर्ता मानने पर आती हैं। हमारा यह दुर्भाग्य है कि अचेलधारा समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगी। प्रस्तुत लेखन में मुनि श्री में नियुक्तियाँ संरक्षित नहीं रह सकी, मात्र भगवती आराधना, मूलाचार पुण्यविजय जी का आलेख मेरा उपजीव्य रहा है। आचार्य हस्तीमल और कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में उनकी कुछ गाथाएँ ही अवशिष्ट हैं। इनमें जी ने जैनधर्म के मौलिक इतिहास के लेखन में भी उसी का अनुसरण भी मूलाचार ही मात्र ऐसा ग्रन्थ है जो लगभग सौ नियुक्ति गाथाओं किया है। किन्तु मैं उक्त दोनों के निष्कर्षों से सहमत नहीं हो सका। का नियुक्ति गाथा के रूप में उल्लेख करता है। दूसरी ओर सचेल यापनीय सम्प्रदाय पर मेरे द्वारा ग्रन्थ लेखन के समय मेरी दृष्टि में धारा में जो नियुक्तियाँ उपलब्ध हैं, उनमें अनेक भाष्यगाथाएँ मिश्रित कुछ नई समस्याएँ और समाधान दृष्टिगत हुए और उन्हीं के प्रकाश हो गई हैं, अत: उपलब्ध नियुक्तियों में से भाष्य गाथाओं एवं प्रक्षिप्त में मैंने कुछ नवीन स्थापनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे सत्य के कितनी निकट गाथाओं को अलग करना एक कठिन कार्य है, किन्तु यदि एक बार हैं, यह विचार करना विद्वानों का कार्य है। मैं अपने निष्कर्षों को अन्तिम नियुक्तियों के रचनाकाल, उसके कर्ता तथा उनकी परम्परा का निर्धारण सत्य नहीं मानता हूँ, अत: सदैव उनके विचारों एवं समीक्षाओं से हो जाये तो यह कार्य सरल हो सकता है। लाभान्वित होने का प्रयास करूंगा। सन्दर्भ 1. (अ) निज्जुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती। 11. गोविंदो... पच्छातेण एगिदिय जीव साहणं गोविंद निज्जुतिकया। - आवश्यकनियुक्ति, गाथा 88 निशीथ भाष्य गाथा 3656, निशीथचूर्णि, भाग 3, पृ० 260, (ब) सूत्रार्थयोः परस्परनियोजनं सम्बन्धनं नियुक्तिः भाग-४, पृ० 96 / - आवश्यकनियुक्ति टीका हरिभद्र, गाथा 83 की टीका। 12. नन्दीसूत्र, (सं. मधुकरमुनि) स्थविरावली गाथा 41 / 2. अत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं तह विआलणं इहं। 13. (अ) प्राकृतसाहित्य का इतिहास, डॉ. जगदीश चन्द्र जैन,पृ० 190 / - आवश्यक निर्यक्ति. (ब) जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, डॉ. मोहनलाल मेहता, पार्श्वनाथ 3. ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, भाग 3, पृ०६। सण्णा सई मई पण्णा सव्वं आभिनिबोहियं।। 14. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 84-85 - वही, 12 // 15. वही, 84 / 4. आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे। 16. बहुरय पएस अव्वत्तसमुच्छादुगतिग अबद्धिया चेव। . सूयगडे निज्जुत्तिं वुच्छामि तहा दसाणं च।। सत्तेए णिण्हणा खलु तित्थंमि उ वद्धमाणस्स।। कप्पस्स य निज्जुतिं ववहारस्सेव परमणि णस्स। बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा ये तीसगुत्ताओ। सूरिअपण्णत्तीए वुच्छं इसिभासियाणं च।। अव्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ।। - वही, 84-85 / गंगाओ दोकिरिया छलुगा तरासियाण उप्पत्ती। 5. इसिभासियाइं (प्राकृत भारती, जयपुर), भूमिका, सागरमल जैन, थेराय गोट्ठमाहिलपुट्ठमबद्धं परुविंति।। पृ० 93 / सावत्थी उसभपुर सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं। 6. बृहत्कथाकोष (सिंघी जैन ग्रन्थमाला) प्रस्तावना, ए.एन.उपाध्ये, पुरमिंतरंजि दसपुर-रहवीरपुरं च नगराई।। पृ०३१ चोद्दस सोलस वासा चोद्दसवीसुत्तरा य दोण्णि सया। आराधना... तस्या नियुक्तिराधनानियुक्तिः। -मूलाचार, पंचाचाराधिकार, अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया उ चोयाला।। गा. 279 की टीका (भारतीय ज्ञानपीठ, 1984) पंच सया चुलसीया छच्चेव सया णवोत्तरा होति। 8. गोविन्दाणं पि नमो अणुओगे विउलधारणिंदाणं। णाणुपत्तीय दुवे उप्पणा णिब्दुए सेसा।। - नन्दिसूत्र स्थविरावली, गा. 41 / एवं एए कहिया ओसप्पिणीए उ निण्हवा सत्त। 9. व्यवहारभाष्य, भाग 6, गा. 267-268: वीरवरस्स पवयणे सेसाणं पव्वयणे णत्थि।। 10. सो य हेउगोवएसो गोविन्दनिज्जुत्तिमादितो...। - वही, 778-784 / दरिसणप्पभावगाणि सत्थाणि जहा गोविंदनिज्जुत्तिमादी। बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। - आवश्यकचूर्णि भाग१, पृ. 31 एवं 353 भाग२, पृ० 201, अव्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ।। 322 / गंगाए दोकिरिया छलुगा तेरासिआण उप्पत्ती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org