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तृतीय अध्ययन शीतोष्णीय है, जिसमें शीत व उष्ण पदों का निक्षेप विधि से व्याख्यान करते हुए स्त्री परीषह एवं सत्कार परीषह को शीत एवं शेष बीस को उष्णपरीषह बताया गया है 163
सम्यकत्व नामक चतुर्थ अध्ययन के चारों उद्देशकों में क्रमशः सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् - तप एवं सम्यक् चारित्र का विश्लेषण किया गया है। 64
निर्युक्तिसाहित्य : एक परिचय
पंचम अध्ययन लोकसार के छः उद्देशकों में यह बताया गया है कि सम्पूर्ण लोक का सार धर्म, धर्म का सार ज्ञान, ज्ञान का सार संयम और संयम का सार निर्वाण है। 65
धूत नामक षष्ट अध्ययन के पाँच उद्देशक हैं जिसमें वस्त्रादि के प्रक्षालन को द्रव्य धूत एवं आठ प्रकार के कर्मों के क्षय को भावधूत 66 बताया गया है। सप्तम अध्ययन व्यवच्छिन्न है। अष्टम् अध्ययन विमोक्ष के आठ उद्देशक हैं। विमोक्ष का नामादि छः प्रकार का निक्षेप करते हुए भावविमोक्ष के देशविमोक्ष व सर्वविमोक्ष दो प्रकार बताये गये हैं। साधु देशविमुक्त एवं सिद्ध सर्वविमुक्त है। 67
अध्ययन उपधानश्रुत में नियुक्तिकार ने बताया है कि तीर्थंकर जिस समय उत्पन्न होता है वह उस समय अपने तीर्थ में उपधानश्रुताध्ययन में तपः कर्म का वर्णन करता है। 68 उपधान के द्रव्योपधान एवं भावोपधान दो भेद किये गये हैं।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध -- प्रथम श्रुतस्कन्ध में जिन विषयों पर चिन्तन किया गया है, उन विषयों के सम्बन्ध में जो कुछ अवशेष रह गया था या जिनके समस्त विवक्षित अर्थ का अभिधान न किया जा सका, उसका वर्णन द्वितीय श्रुतस्कन्ध में है। इसे अग्रश्रुतस्कन्ध भी कहते हैं।
चूलिकाओं का परिमाण इस प्रकार है "पिण्डैषणा" से लेकर "अवग्रह प्रतिमा" अध्ययन पर्यन्त सात अध्ययनों की प्रथम चूलिका, सप्तसप्ततिका नामक द्वितीय चूलिका, भावना नामक तृतीय, विमुक्ति नामक चतुर्थ एवं निशीथ नामक पंच चूलिका है। 69
5. सूत्रकृतांगनिर्युक्ति
इस नियुक्ति में 205 गाथाएँ हैं। प्रारम्भ में सूत्रकृतांग 70 शब्द की व्याख्या के पश्चात् अम्ब, अम्बरीष, श्याम, शबल, रुद्र, अवरुद्र, काल, महाकाल, असिपल, धनु, कुम्भ, बालुक, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष नामक पन्द्रह परमाधार्मिकों के नाम गिनाये गये हैं। गाथा 119 में आचार्य ने 363 मतान्तरों का निर्देश किया है, जिसमें 180 क्रियावादी, 84 अक्रियावादी, 67 अज्ञानवादी और 32 वैनयिक हैं। इसके अतिरिक्त शिष्य और शिक्षक के भेद-प्रभेदों की भी विवेचना की गई है। 71
6. दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति
यह निर्युक्ति दशाश्रुतस्कन्ध नामक छेदसूत्र पर है। प्रारम्भ में नियुक्तिकार ने दशा, कल्प और व्यवहार श्रुत के कर्ता सकलश्रुतज्ञानी श्रुतकेवली आचार्यभद्रबाहु को नमस्कार किया है। 72 तदनन्तर दस अध्ययनों के अधिकारों का वर्णन किया है। प्रथम अध्ययन असमाधिस्थान की नियुक्ति में द्रव्य व भाव समाधि की विवेचना की गई है। द्वितीय अध्ययन शबल की नियुक्ति में चार निक्षेपों के आधार पर शबल की व्याख्या करते हुये आचार से भिन्न अर्थात् अंशतः गिरे व्यक्ति को भावशबल कहा गया है।
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तृतीय अध्ययन आशातना की नियुक्ति में मिथ्या प्रतिपादन सम्बन्धी एवं लाभ सम्बन्धी दो आशातना की चर्चा की गई है।
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