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श्रीमती रत्ना ओस्तवाल
४ : परिवार में भी सबको खिलाकर अंत में और कभी-कभी
कम खाना पड़ता है। ५ : ७६% मर्दो की तुलना में ५४% भारतीय महिलाएं साक्षर
६ : चाहे शासन हो या समाज परिवार में निर्णय लेने वाले पदों
पर औरतों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। वर्तमान में ८% से कम संसदीय सीटों पर ६% से कम मंत्रीमंडलों और ४% उच्च और उच्चतम न्यायालयों मे स्थान है।
जीवन भर ७०% महिलायें परिवार के भीतर व बाहर हिंसा का सामना करती हैं। पुलिस रिकार्ड के अनुसार हर २५ मिनट पर यौन उत्पीड़न और यौन छेड़छाड़, ३४ मिनट पर बलात्कार, ४५ मिनट पर यौन उत्पीड़न और हर ४३ मिनट पर एक औरत से तलाक या अलगाव किया जाता है।
सार्वजनिक मुद्दों पर विचार या चिंतन हेतु या औरतों पर होने वाले अमानवीय अत्याचारों पर दिया जाने वाला समय चाहे
वह मिडिया हो, चाहे समाचार पत्र हो, चाहे नेताओं के भाषण हों, नारी सशक्तिकरण महज
इन निर्धारित कार्यक्रमों में मात्र १४% जगह महिलाओं के लिए
निर्धारित होती हैं। एक नारा नहीं है
आज के आधुनिक परिवेश में प्रचार-प्रसार के माध्यम से हम कभी ऐसी टिप्पणियां सुनते हैं कि लिंग भेद एक
कामकाजी महिलाओं को घुस्सैल, चिड़चिड़ी रिश्तों में निभाने में पश्चिमी धारणा है। भारत देश में इसकी जरुरत नहीं है इस सोच
असफल बताया जाता है। आज के आधुनिक सीरियल या को सिद्ध करने के लिए कई तर्क दिये जाते हैं। जैसे अनादिकाल
विज्ञापनों की दुनिया में नारी को बढ़ा-चढ़ाकर चाहे यौन से देवी पूजा होती आई है। प्राचीन इतिहास में जैसे कई विदुषी
उत्पीड़न, शादी, माता पिता की भूमिका आदि उठाये गये महिला, शासकीय, प्रशासकीय महिला पुराणों में लोक कथाओं
महत्वपूर्ण मुद्दों पर अवांछनीय मजाक उड़ानेवाले, रीति रिवाजों में, आगमों में नारी गाथा का सार्वभौम उल्ल्ख है और उनकी
पर कलंक रूप, शादी के बंधन का घिनौना रूप दर्शाकर नारी सेवा समर्पणा की लोक दुहाई देते हैं जिससे साबित होता है कि
पात्र को कलंकित किया जाता है। आज भी प्रकाशन माध्यम में औरतों का मान, सम्मान और आदर सदैव होता आया है।
औरतों को सिर्फ हाशिये पर जगह मिलती है। विज्ञापन के जरिये
अश्लील रूप में नारी के प्रदर्शन आदि के खिलाफ आवाज पर भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां औरतों को वोट
अनदेखा किया जाता है। आज तक किसी भी प्रांत ने अश्लील देने का अधिकार मिला है। भारत का संविधान भी औरतों को,
विज्ञापन पर रोक नहीं लगाई है। मर्दो को समान अधिकार का आश्वासन देता है। यह सभी बातें साबित करती हैं कि भारत की औरत समाज की स्वतंत्र व
भारत में कितनी औरतें रहती हैं? पिछले समय की गणना सम्मानित सदस्य है।
के अनुसार भारत की कुल १.०३ अरब की जनसंख्या में ४९
करोड ६० लाख औरतें हैं। इस अनुपात में तो एक हजार मर्दो कुछ सबूतों का पुल्लिंदा दर्शाता है कि -
के पीछे ९३३ औरते हैं। जनसंख्या की दृष्टि से ३.२ करोड़ १ : भारत में प्रति १००० मर्दो पर ९३३ औरतें हैं।
औरतें गायब हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि औरतें पैदा होने के २: अधिकांश औरतें कुपोषण का शिकार होती हैं। पहले ही मार दी जाती हैं। कुछ कुपोषण, कुछ बलात्कारी की । ३ : परिवार के भीतर लड़कियों को पोषण संबंधी भेदभाव का शिकारी होकर आत्महत्या करती हैं। माननीय अमर्त्य सेन के सामना करना पड़ता है,
तर्क के अनुसार ३.२ करोड़ का हिसाब हमारे पास नहीं है। यह
० अष्टदशी / 1090
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