________________ 332 : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ धान्य, स्त्री आदिका भोक्ता और कर्ता जोवको मानना, ज्ञान और ज्ञेयमें बोध्यबोधक सम्बन्ध होनेसे ज्ञानको ज्ञेयगत मानना आदि ये सब नयाभास हैं। समयसारमें तो एक शुद्ध द्रव्यको निश्चयनयका विषय मानकर बाकी परनिमित्तक स्वभाव या परभाव सभीको व्यवहारके गड्ढे में डालकर उन्हें हेय और अभूतार्थ कहा है। एक बात ध्यानमें रखने की है कि नैगमादिनयोंका विवेचन वस्तुस्वरूपकी मीमांमा करनेकी दृष्टिसे है जब कि समयसारगत नयोंका वर्णन अध्यात्मभावनाको परिपुष्टकर हेय और उपादेयके विचारसे मोक्षमार्गमें लगानेके लक्ष्यसे है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org