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पंचम खण्ड | १५६ निसगंज सम्यक्त्व की प्रक्रिया कुछ स्पष्ट है जबकि अधिगमज सम्यक्त्व प्राप्ति की प्रक्रिया ग्रन्थों में विस्तार से वर्णित है। ___ यहां दो ऐतिहासिक दृष्टान्त उपयोगी रहेंगे।
एक था नाविक कोलम्बस । संसार के इतिहास में बड़ा नाम है उसका, अपने देश फ्रान्स अर्चनार्चन | से चला। बड़ी धूमधाम से इसे फ्रान्स के राजा और जनता ने विदा दी । उसका उद्देश्य
भारतवर्ष को पहुँचाने वाला जल-मार्ग खोजना था। चल दिया अपना लक्ष्य पाने के लिए।
किन्तु जा पहुँचा ऐसे टापू में जहाँ से बाद में उत्तरी अमेरिका का पता लगा। यद्यपि वह मन में यही समझा कि मैं भारतवर्ष पहुँच गया । मैंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
दूसरा नाविक था वास्कोडिगामा। वह भी चला भारत को लक्ष्य बनाकर । उसका उद्देश्य भी समुद्री मार्ग से भारत पहुंचना था। पुर्तगाल के राजा ने उसको मार्गव्यय भी बड़ी मुश्किल से दिया।
किन्तु वह भारत के बन्दरगाह पर प्रा पहुँचा। उसने अपना वास्तविक लक्ष्य पा लिया।
क्या कारण रहा इसका ? एक क्यों सफल नहीं हुआ, दूसरा क्यों सफल हो गया। जबकि इतिहास बताता है कि कोलम्बस बहुत ही शांत स्वभावी था, नम्र नीति से काम लेने वाला, साथी नाविकों के साथ उसका बहुत ही मुलायम व्यवहार था।
इसके विपरीत वास्कोडिगामा कठोर अनुशासनप्रिय था। वह स्वयं भी अनुशासन में रहता था और साथी नाविकों को भी अनुशासन में रखता था, विरोध उसे बर्दाश्त नहीं था, प्रकृति (स्वभाव) से वह उग्र था, अपनी ही चलाता था, किसी की नहीं सुनता था।
साधारणतया ऐसा व्यक्ति विफल ही होता है; किन्तु फिर भी वह सफल हुआ। उसकी सफलता का क्या रहस्य था ?
रहस्य था-सही सूचना, पक्का इरादा, दूरदृष्टि, अनुशासन । उसे अरब लोगों से भारत की दिशा के बारे में, अवस्थिति के बारे में सही सूचनाएं मिली थीं। उन लोगों से उसने मार्ग-दर्शन प्राप्त किया था जो स्वयं भारतवर्ष हो पाये थे-स्थल मार्ग से ही सही ।
इसके विपरीत कोलम्बस का आधार उन लोगों से प्राप्त जानकारियां थीं, जो स्वयं कभी भारत गये ही नहीं थे, उन्होंने दूसरे लोगों से सुन ही लिया था और उन्होंने भी किन्हीं अन्य लोगों से सुना था। उसे सिर्फ अनुमानित ज्ञान ही प्राप्त हुआ था, प्रत्यक्षशियों द्वारा बताया गया ज्ञान नहीं था।
इसी तरह जो लोग प्रत्यक्षदर्शियों और साक्षात् प्रात्मानन्द की अनुभूति करने वाले अनुत्तर ज्ञान-दर्शनसम्पन्न महापुरुषों द्वारा बताये मार्ग का अनुसरण करते हैं, वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं, सम्यक्त्वलाभ कर लेते हैं।
तथा जो अन्य लोगों के बहकावे में आकर प्रयास शुरू कर देते हैं, वे इधर-उधर भटक जाते हैं, कोलम्बस की तरह प्राणान्तक विपत्तियाँ सहते हैं, फिर भी लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते । सम्यक्त्व की ज्योति और प्रात्मानन्द की झलक भी उन्हें नहीं मिलती।
सद्गुरुयों द्वारा उपदेश-प्राप्त साधक जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है, वह अधिगमज
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