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दया / करुणा / अनुकम्पा सम्यग्दर्शन / ज्ञान / चारित्र
• विनय
धर्म - साधना के तीन आधार
- उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि ( व० स्था० श्रमण संघ के उपाचार्य, शताधिक ग्रन्थों के लेखक, बहुत विद्वान विचारक )
धर्म क्या है ? और दर्शन क्या है ? यह जान लेने के बाद, हर साधक को यह जानना उपयोगी होता है कि आखिर इन दोनों की जड़ क्या है ? अर्थात्, धर्म और दर्शन की शुरुआत कहाँ से होती है ? इस जिज्ञासा को लेकर जब जैन - वाङमय में भ्रमण किया जाता है, तो यह पता चलता है कि यहाँ पर धर्म के मूल की तलाश में तीन आचार्यों ने अपने दृष्टिकोण प्रकट किये हैं । ये हैं :
१. 'दया' धर्म की जड़ है । प्राणियों पर 'अनुकम्पा' करना दया है । यह दिगम्बर आचार्य जिनसेन का दृष्टिकोण है।
२. तीर्थंकरों ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया है कि धर्म की शुरुआत दर्शन से होती है । यह सिद्धान्त अध्यात्मवादी आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट किया है ।
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३. दशवैकालिक' में, श्वेताम्बर आचार्य शय्यम्भव ने बतलाया है कि धर्म का मूल 'विनय' है । क्योंकि 'विनय' से मोक्ष प्राप्त होता है ।
१. दयामूलो भवेद्धर्मो दया प्राण्यनुकम्पनम् ।
२. दंसणमूलो धम्मो उवइट्टो जिणवरेहिं सिस्साणं ।
३. एवं धम्मो विणओ मूलं परमो से मोक्खो ।
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- महापुराण, २१।५।६२
- दर्शन पाहुड, २ २२
-- दशवेकालिक,
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