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डा० वीरेन्द्रसिंह एम .ए., पी-एच. डी. [प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, राज० वि० वि०, जयपुर
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चय धर्म का वैज्ञानिक विवेचन
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पुराण और धर्म-प्रवृत्ति की वैज्ञानिकता
धर्म का क्षेत्र ज्ञान-साक्षात्कार का क्षेत्र है और वैज्ञानिक विचारधारा में ज्ञान का स्वरूप सापेक्ष माना गया है । इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि धर्म और विज्ञान, मानवीय ज्ञान के दो महत्त्वपूर्ण पक्ष होने के नाते उनका सम्बन्ध मानवीय चेतना के क्रमिक विकास से सम्बन्धित है। पुराण और मिथकीय प्रवृत्ति का सम्बन्ध भी धार्मिक मनोभाव के विकास के साथ जुड़ा हुआ है और इस सम्बन्ध में हमें कहीं-कहीं पर वैज्ञानिक प्रत्ययों की हल्की-सी झलक मिल जाती है। इसका तात्पर्य केवल इतना है कि मानवीय चेतना के विकास में अनुभव की तार्किकता लक्षित होने लगती है । कार्य-कारण की यह तर्कना शक्ति वैज्ञानिक मनोभाव की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
पुराण और धर्म का एक तार्किक सम्बन्ध है, क्योंकि दोनों अनुभव की आधारशिला को लेकर ही विकसित हुए हैं । हर्बर्ट स्पेन्सर का कथन है कि धार्मिक विचार मानवीय अनुभव से प्राप्त किए गए हैं जो क्रमशः संगठित और परिष्कृत होकर, प्रतीकात्मक रूप में स्थिर हो गए। यह धारणा ब्रह्मा, विष्णु और महेश के स्वरूप विश्लेषण से स्पष्ट होती है कि सृष्टि के तीन तत्त्वों (सृष्टि, सामंजस्य तथा संहार) के आपसी संतुलन से ही विश्व की स्थिति सम्भव है। 'त्रिमूति' की इस धारणा के पीछे मानव की अनुभव शक्तियों पर आश्रित 'तर्कना' का एक ऐसा रूप मिलता है जो प्राचीन मानव को घटनाओं और वस्तुओं के सापेक्ष सम्बन्ध की ओर प्रेरित करता है। इसी प्रकार किसी न किसी देवता की कल्पना एक वैज्ञानिक सत्य का निर्देशन है। प्राणिशास्त्र की दृष्टि से, सृष्टि एवं प्रजनन के लिए 'एक' की सत्ता निष्क्रिय है, उसमें सक्रियता उसी समय आती है जब वह दूसरी विपरीत “सत्ता" से संसर्ग स्थापित करती है। इस दृष्टि से “अर्धनारीश्वर" का महत्त्व भी दर्शनीय है। वेदांत-दर्शन में यह प्राप्त होता है कि 'जब ब्रह्म को सृष्टि का ईक्षण (कामना) हुआ, तब उसने 'माया' की उत्पत्ति की और सृष्टि कार्य सम्पन्न किया ।२
उपर्युक्त उदाहरणों से यह निष्कर्ष निकालना कि सभी धार्मिक प्रस्थापनाओं के पीछे यह 'वैज्ञानिकता' प्राप्त होती है। मैं तो यह मानता हूँ कि वैज्ञानिक दृष्टि से हम धार्मिक तात्त्विक संकेतों को अधिक गहराई से समझ सकते हैं। यह 'गहराई' विश्लेषणात्मक पद्धति के द्वारा स्पष्ट
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१ दि फर्स्ट प्रिंसिपल, स्पेन्सर, पृ० १५ २ उपनिषद् भाष्य, खण्ड १, पृ० ५६-५७ (गीता प्रेस)
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