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________________ दिल्ली पट्टके मूलसंघीय भट्टारक प्रभाचन्द्र और पद्मनन्दि पं० परमानन्द जैन शास्त्री प्रभाचन्द्र नामके अनेक विद्वान हो गये हैं। एक नामके अनेक विद्वानोंका होना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। जैन साहित्य और इतिहासको देखनेसे इस बातका स्पष्ट पता चल जाता है कि एक नामके अनेक आचार्य विद्वान् और भट्रारक हो गये हैं। यहाँ दिल्ली पट्टके मूलसंघीय भट्टारक प्रभाचन्द्रके सम्बन्धमें विचार करना इस लेखका प्रमुख विषय है। पट्टे श्रीरत्नकीर्तेरनुपमतपसः पूज्यपादीयशास्त्रव्याख्या विख्यातकीर्तिगुणगणनिधिपः सत्क्रिचारुचंचुः ।। श्रीमानानन्दधामा प्रति बुधनुतमामान संदायि वादो जीयादाचन्द्रतारं नरपतिविदितः श्रीप्रभाचन्द्रदेवः ॥ (-जैन सि. भा० भाग १ किरण ४) पट्टावलीके इस पद्यसे प्रकट है कि भट्रारक प्रभाचन्द्र रत्नकीति भट्टारकके पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे। रत्नकीति अजमेर पके भट्रारक थे। दूसरी पदावलीमें दिल्ली पट्रपर भ० प्रभाचन्द्र के प्री समय सं० १३१० बतलाया है और पट्टकाल सं० १३१० से १३८५ तक दिया है, जो ७५ वर्षके लगभग बैठता है । दूसरी पट्टावलीमें सं० १३१० पौष सुदी १५ प्रभाचन्द्रजी गृहस्थ वर्ष १२ दीक्षा वर्ष १२ पट्ट वर्ष ७४ मास ११ दिवस २३ । (भट्टारक सम्प्रदाय पृ० ९१) भट्टारक प्रभाचन्द्र जब भ० रत्नकीतिके पट्टपर प्रतिष्ठित हुए उस समय दिल्ली में किसका राज्य था, इसका उक्त पट्टावलियोंमें कोई उल्लेख नहीं है। किन्तु भ० प्रभाचन्द्रके शिष्य धनपालके तथा दूसरे शिष्य ब्रह्म नाथूरामके सं० १४५४ और १४१६ के उल्लेखोंसे ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्रने मुहम्मद बिन तुगलकके मनको अनुरंजित किया था और वादीजनोंको वादमें परास्त किया था जैसा कि उनके निम्न वाक्योंसे प्रकट है 'तहिं भवहि सुमहोच्छव विहियड, सिरिरयणकित्ति पट्टेणिहियउ । महमंद साहि मणु रंजियउ, विज्जहि वाइय मणु भंजियउ ।। -बाहुबलिचरित प्रशस्ति उस समय दिल्लीके भव्यजनोंने एक उत्सव किया था। मुहम्मद बिन तुगलकने सन् १३२५ (वि० सं० १३८२) से सन् १३५१ (वि० सं० १४०८) तक राज्य किया है। यह बादशाह बहुभाषाविज्ञ, न्यायी, विद्वानोंका समादर करनेवाला और अत्यन्त कठोर शासक था। अतः प्रभाचन्द्र इसके राज्यमें सं० १३८५ के लगभग पट्रपर प्रतिष्ठित हए हों। इस कथनसे पट्टावलियोंका वह समय कुछ आनुमानिक सा जान पड़ता है। वह इतिहासको कसौटोपर ठीक नहीं बैठता। अन्य किसी प्रमाणसे भी उसकी पुष्टि नहीं होती। इतिहास और पुरातत्व : १९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211169
Book TitleDellhi Patta ke Mulsanghiya Bhattarak Prabhachandra aur Padmanandi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherZ_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size635 KB
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