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सन्दर्भ-ग्रन्थ
1. रत्नत्रयोपेतः श्रमणगतः संघः -- सर्वार्थसिद्धि, 6 / 13, पृ. 331
2. श्रमयन्ति तपस्यन्ति इति श्रमणाः तेषां समुदायः श्रमणसंघः
• भगवती आराधना, विजयोदयाटीका, 510, पृ. 730
3. मूलाचार, 5/66
4. नन्दिसूत्र स्थविरावली, 7-8
5. सर्वार्थसिद्धि, 9 / 24, पृ. 442, त. 2, श्लोक वा., 9/24, भावपाहुड टीका, 78
6. आचारांगशीलांकवृत्ति, 2, 1, 10,279, पृ. 322
7.
आ. भिक्षु स्मृति ग्रन्थ -- द्वितीय खण्ड, पृ. 291 8. वरं गणपवेसादो विवाहस्स पवेसणं ।
विवाहे राग उत्पत्ति गणो दोसाणमागरो ।। --
9. आचार्यभिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 292 गच्छ ऋषिकुलं मूलाचार वृत्ति 4/185 11. सप्तपुरुषकस्त्रिपुरुषको वा गच्छ:, वही, 4 / 174
10.
12. सर्वार्थसिद्धि, 9/24, पृ. 442
13. स्थानांग टीका (अभयदेवसूरी), पृ. 516
14. मूलाचार, 4/166
15. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 291
16. प्रवचनसार ता. वृत्ति, 203, पृ. 276
--
17. यापनीय और उनका साहित्य, पृ. 42
18. गोपुच्छिका श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकाः ।
दिगम्बर जैन परम्परा में संघ, गण, गच्छ, कुल और अन्वय
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मूलाचार, 10.92
निपिच्छकाश्चेति पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः । । -- इन्द्रनन्दिश्रुतावतार, 10
19. पद्मचरितम् - भाग 1, श्री नाथूराम प्रेमी का प्राक्कथन, सन् 1928
20. तस्मिन्गते स्वर्गभुवं महर्षो दिवः पतिं नर्तुमिवप्रकृष्टां ।
तदन्वयोद्भूतमुनीश्वराणां बभूवुरित्थं भुवि संघभेदाः ।।19 ।। जैन सिद्धान्त भाष्कर अंक 2-3 में प्रकाशित शिलालेख ।
21. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग 2, पृ. 55 22. इन्द्रनन्दि श्रुतावतार श्लोक, 91-95 23. आयातौ नन्दिवीरौ प्रकटगिरिगुहावासतोऽशोकवाटादेवाश्चान्योऽपरादिर्जित इतियतयो सेन-भद्राद्यौ च ।
पंचस्तप्यात्सगुप्तौ गुणधरवृषभः शाल्मलीवृक्षमूलात्
निर्यातौ सिंहचन्द्रौ प्रथितगुणगणी केसरात्खण्डपूर्वात् । । इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार श्लोक 96
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24. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 295
25. वही,
26. यापनीय और उनका साहित्य, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, पृ. 41,
27. आचार्य भिक्षु स्मृतिग्रन्थ, पृ. 294
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