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भारत की प्राचीन संस्कृति में जैन धर्मका विशेष योगदान रहा है । धार्मिक, सांस्कृतिक, श्रार्थिक, सामाजिक, राजनैतिक गतिविधियों में जैन धर्मावलम्बियों की महत्वपूर्ण भूमिका सदियों से रही है । वहाँ इस धर्म के प्रचारकों एवं अनुयायियों की ओर से साहित्य सर्जन की विशेष देन भी रही है । इतिहास, पुरातत्त्व एवं वस्तुकला में जैन धर्म के प्राचीन ग्रन्थ एवं मन्दिर आज भी प्राचीन भारतकी गौरवशाली तस्वीर लिये हुए हैं। इस धर्म के अंचलगच्छ के संत महात्मानों, प्राचार्यों का साहित्य, इतिहास पुरातत्त्व के साथ-साथ सत्य एवं अहिंसा का धर्म प्रचार करने की अमूल्य देन रही है । इसी संदर्भ में युगप्रधान दादा कल्याणसागर सूरीश्वरजी महाराज साहब की स्मृति होना स्वाभाविक ही है, जिनकी जैन धर्मके व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु, वास्तुकला के कलात्मक नवनिर्माण करवाने, धर्म प्रचारकों को तैयार करने, ज्ञान भंडारोंकी स्थापना, चतुर्विध संघ की तीर्थ-यात्राओं का प्रायोजन, जैन एकता, महाव्रत अणुव्रतों का प्रचार करने में अनूठी देन विश्व के रंगमंच पर रही है । आज इन महान् त्यागी और तपस्वी की स्मृतियां देश के अनेकों जैन मन्दिरों में प्रतिभाओं, चरण पादुकायों के रूप में विद्यमान है वहां अनेकों ज्ञान भंडारों में श्राप द्वारा लिखित ग्रन्थ श्रापकी प्रोजस्वी ज्ञान-गरिमा के परिचायक बने हुए हैं ।
युगप्रधान दादाश्री
कल्याणसागरसूरीश्वरजी
भारत के ऐसे महान् रत्न का जन्म गुजरात के लोलाडा गांवमें श्रीमालजाति के कोठारी वंशके श्री नानिग के यहां श्रीमती नामिलदे की कोख से वि. सं. १६३३ आषाढ़ सुद दूज ( वैशाख सुद छट्ठ) गुरुवार को हुआ । प्रभात की अनोखी वेला आर्द्रा नक्षत्र में माताने पुत्रको जन्म दिया उस समय सम्पूर्ण परिवार में विशेष खुशी की लहर दौड़ पड़ी । सम्पूर्ण गांव में विशेष ग्रानन्द का अनुभव जनमानस को होने लगा । प्राकृतिक सौन्दर्य भी सुहावना बन गया । पशु पक्षियों में भी विशेषतौर से खुशी की उछलकूद होने लगी । जब माताश्री नामिलदे ने गर्भ धारण किया उस समय उन्हें प्रभात की सुहावनी वेलामें उगता हुआ सूर्य का दिव्य स्वप्न दिखाई दिया, जो अज्ञान, अत्याचार, अनाचार के अन्धकार को मिटाने का प्रतीक था ।
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- श्री भूरचन्द जैन
श्रीनानिग के यहां बालक का जन्म हुआ, उससे पहले इनके सात वर्षीय सोमादे पुत्री भी थी । माता पिताके असीम लाड प्यार में पलने वाले बालक का नाम कोडनकुमार रखा गया । गोरा बदन, चमकती ग्रांखे, घुंघराले बाल व सांचे में ढले अंग ऐसे लग रहे थे मानों विधाताने इतमिनान से इस महान् देह की रचना की हो । बालक के गौर बदन, हृष्टपुष्ट शरीर, खिलता मुखड़ा, चंचलता को देखकर सभी इनकी ओर स्वतः ही प्राकर्षित
શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિગ્રંથ
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