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________________ 7. उत्तम तप धर्म-संयम पालन करने पर ही तप किया जा सकता है। तप द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है। प्राणी को सम्यक् तप द्वारा 'पर' से रुचि हटाकर आत्म-रुचि जाग्रत करनी चाहिए। इसी से उसका कल्याण होता है। 8. उतम त्याग धर्म-अनादि काल से यह जीव स्व को भूलकर पर-द्रव्य को ग्रहण करता रहा है। जिन वाणी को सुनने के बाद मन में त्याग की भावना प्रबल होती है। त्याग दो प्रकार का होता है-एकदेश त्याग और सर्वदेश त्याग / इनमें से पहला गृहस्थों के लिए है, दूसरा साधुओं के लिए / संसार में त्यागी महान् होता है। अतः प्राणी को त्याग धर्म का निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिए। 6. उत्तम आकिंचन्य धर्म-आकिंचन्य का अर्थ है-मैं अकिंचन हूं। पदार्थ परिग्रह नहीं है बल्कि पदार्थ में ममता परिग्रह है / हर एक को यह याद रखना चाहिए कि उसे इस संसार से जाना है / अतः उसे त्याग करते रहना चाहिए। मंदिर में नित्य दर्शन के लिए जाना, दान करना तथा गुरु भक्ति करने से मन वासनाओं से दूर हो जाता है और उसमें आकिंचन्य भावना की लौ सदा प्रज्वलित रहती है। 10. उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म-अपनी आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है। यह दो प्रकार का होता है। सम्पूर्ण कर्म की निर्जरा करके, अपने स्वरूप में लीन होकर जो सिद्ध पद प्राप्त करता है उसे ब्रह्म या सिद्ध कहते हैं। व्यवहार में स्वस्त्री और परस्त्री का त्याग करके अपने आत्मसाधन में लीन रहना ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मज्योति के झलकने से दूसरे विकारों का स्वतः दमन हो जाता है। इसके पालन से व्यक्ति निरोगी, कांतिवान्, विद्यावान् होता है तथा उसकी स्मरण शक्ति भी विकसित होती है। उक्त दश लक्षण धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति के मन में भगवान के धर्म का सदा वास होता है। इससे प्रेरणा पाकर मानव स्वयं अपना ही नहीं बल्कि अन्यों का भी कल्याण करता है। पर्व की भांति नित्य ही शुद्ध आहार और जल लेने पर व्यक्ति एक ओर रोगों से मुक्त होता है और दूसरी ओर उसे पुण्य लाभ भी मिलता है। आचार्य के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को दश-लक्षण-धर्म का पालन करना चाहिए, जिससे एक ऐसे मानव-समाज का विकास हो सके, जिसमें एकता हो और सभी लोग सुखी रह सकें। सृजन-संकल्प 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211154
Book TitleDashlakshan Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Bhargav
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle, Religion, & Paryushan
File Size355 KB
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