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________________ O .0 ५३० DISISI Jain Education International कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड भाव की चर्चा जैन दर्शन में भाव पाँच माने गये हैं—औदयिक, औपशभिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक । भाव का अर्थ है - कर्मों के उदय, उपशम आदि से होने वाली अवस्था । आचार्य भिक्षु ने आठ कर्मों के इन पाँच भावों का विस्तार से वर्णन किया है। जैसे 'उदै भाव मोहकर्म उदै सुं उद भाव छ । ते तो सावद छ । सेष ७ कर्मों रे उदं सुं उदै भाव ते साबद निर्वाद दो नथी। अनं उपसम भाव से तो मोहणीकर्म उपसमिया चाय । दर्श मोहणी उपसमियां तो उपसम समकत पामें अनं चार्तमोहिणी उपसमियाँ उपसम चार्त पांयें ।' .............इव्रत तो अनादकालरी है। मोहणी कर्म रा जोग सुं आसा बांध्या लाग रही छं । यांसु सावद कृतव्य करें ते पिण मोहिणी कर्मरा उदासु करें छे । ते पिण इण उदै रा कृतव्य औगण छँ । पिण खयोपसम में औगण नहीं । ......... योग की चर्चा जैन दर्शन में तीन योग माने हैं-मनो-योग, वचनन्योग और काय-योग | ये शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं । उनके 'लघु निबन्ध योग री चरचा, में इनके शुभ-अशुभ होने के निमित्तों की चर्चा है। इस विषय का इतना सूक्ष्म विवेचन विरल ही मिलता है। एक सौ इक्यासी बोलां री हुंडी हुंडी आगम को सप्रमाण संक्षिप्त निरूपण करने की विधा है। आचार्य भिक्षु ने साधु-साध्वियों की आगम विषयों की विशेष स्मृति रह सके, इसलिए विभिन्न हुंडियां बनाई। उन दिनों स्थान-स्थान पर धार्मिक चर्चाएँ होती थीं। जय-पराजय का प्रश्न उभरा हुआ था। जो वादी आगमिक स्थलों के अधिक प्रमाण प्रस्तुत करने में कुशल होता था वह अपने प्रतिवादी को सहजता पराजित कर देता । उस समय से इंडियाँ बहुत काम आती थीं। क्योंकि आगमों के सारे विषयों की स्मृति रख पाना बहुत कठिन कार्य है । किन्तु आवश्यक स्थलों की स्मृति भी किसी विधि से ही रखी जा सकती थी। इस विषय में हुंडियों ने बहुत सहयोग दिया । से प्रस्तुत ग्रन्थ में भिन्न-भिन्न विषयों पर भिन्न-भिन्न आगमों के प्रमाण प्रस्तुत किये हुए हैं। सारे विषय १०१ हैं। इस ग्रन्थ का प्रारम्भ साहित्यिक ढंग से हुआ है। 1 जे हलुकरमी जीव होसी ते सुण-सुण ने हरष पामसी । त्यागने न्याय मारग बतायां सु सुसाधां ने उत्तम जाणसी । कुगुरु ने छोड़ सतगुरु ने आदरसी जे भारी कर्मा होसी से सुन-सुन ने य पामसी । ........ । त्यांने दिष्टंत देइ नै ओलखावे छै; चोर ने चांनगो न सुहावे ज्यूं भारी करमां जीवां ने आचार री बात न सुहावे । घुघु ने दिन ने न वाजित्र न सुहावे, ज्यू भारी करमां" सूजे, ज्यू भारी करमां । रोगी ने I ताव चढ्यो तिण नै धान न भाव, ज्यू सरपरा जहर चढ्द्यां ने नींव कडवो न लागे, ज्यू भारी कडवा न लागे । 1 हुंडी के क्रम को समझने के लिए उसके कुछ बोल नीचे लिखे जा रहे हैं(१) साध थई नै सिज्यातरपिंड भोगवै त्यांने अणाचारी कह्या । -साथ सूत्र (२) साध थई नै सिज्यातरपिंड भोगवे तिण ने मासिक प्राछित आवे । - साख सूत्र नसीत, उदेसो २ । इसका ग्रन्थमान लगभग ७०० अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण है । 1 । पांव रोगी ने खाज सुहावं, ज्यूँ ... करमा जीवां नै भिष्ट आचारी भागल गुरु For Private & Personal Use Only कालक, अपेन २० (बोल २०) ......... www.jainelibrary.org.
SR No.211138
Book TitleTerapanth ka Rajasthani Gadya Sahtiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size587 KB
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