SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरापंथ का राजस्थानी गद्य साहित्य ५४१ ....-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-. _तेरापंथ भण्डार में आचार्यों द्वारा साधु-साध्वियों के लिए लिखे गये पत्रों का भी अच्छा संकलन है। यह पत्रलेखन आचार्य भिक्षु से लेकर आज तक चलता आ रहा है । इन पत्रों में शासन की सारणा-वारणा से सम्बन्धित समाचार तथा आचार्य के आदेश-निर्देश होते हैं। किसी साधु-साध्वी का सिंघाड़ा (ग्रुप) दूर देश में भ्रमण कर रहा है। आचार्य उसको स्थितिवश विशेष निर्देश देना चाहते हैं, तो वे साधु-साध्वी के माध्यम से उसको पत्र द्वारा सूचित करते हैं । इन पत्रों के माध्यम से विविध प्रकार की जानकारी दी जाती है । मैं समझता हूँ, ये पत्र हमारे संघ की अमूल्य निधि हैं, जिनका मूल्य वर्तमान में कम परन्तु भविष्य में अधिक होगा। साधु-साध्वी भी अपनी भावना, भक्ति, उत्साह और समर्पण की बात पत्रों द्वारा आचार्य तक पहुँचाते हैं। प्राय: ये पत्र राजस्थानी भाषा में लिखे गये हैं । कुछेक पत्र हिन्दी में और कुछेक संस्कृत में भी हैं। तेरापंथ में आठ आचार्य हो चुके हैं । पहले आचार्य श्री भिक्षु और चौथे आचार्य श्रीमज्जयाचार्य के साहित्य का वर्णन पूर्व पृष्ठों में आ चुका है। शेष आचार्यों तथा मुनियों का गद्य साहित्य विशेषतः केवल पत्र-लेखन के रूप में ही मिलता है। एक बार श्रीमज्जयाचार्य के बड़े भाई मुनिश्री सरूपचन्दजी ने श्रीमज्जाचार्य को पत्र लिखा 'पूजजी महाराज श्री श्री श्री श्री श्री कृपानिधि गुणजिहाज गुणसमुद्र कृपानिधि गणाधार गणदीपक गणतिलक गणानंदकारक मर्यादाधारक अखल आचार आधारक सू ऋष सरूपरी तरफरी श्रीपूजजी महाराज श्रीजीतमलजी स्वामी सुखसाता पुछवै । १००८ वार गणे मांन सूं गणे-गणे मान सेती मालम होय । आप बड़ा उत्तम पुरुष हो।.... .."आपरो आधार आपरो सरणो छ । सर्व कारज में आपरी आज्ञा रो आधार छ । मांसु आप उपगार घणो कीधो। भाँति-भाँति रो साज दीधो । ऊणायत किणही बात री राखी नहीं । ...... सती सिणगार सिरदाराजी-सू ऋष सरूप री गाडी सुखसाता वाँचजो । हेत मिलाप राखो तिण सं विशेष राखजो । श्रीजी महाराज रा सरीर रा जतन घणां कीजो । मुरजी पकी आराधजो । भाँति-भांति कर साता उपजाइजो। थारै भरोसे नीचीता छा। गणपति ने गणसमदाय रा आपरी कांनी री जमाषातर छ ।....."सं० १९२० मगसुर बिद ३, खानपुर मधै ।' आचार्य तुलसी वि० सं० १९६३ में आप बावीस वर्ष की अवस्था में तेरापंथ के नौवें आचार्य बने । आपने आचार्य-काल के इन चालीस वर्षों में विविध प्रकार का साहित्य रचा और काव्यों की शृखला में अनेक काव्यों का निर्माण किया। आप राजस्थानी के सिद्धहस्त कवि हैं। आपकी प्रायः कृतियाँ राजस्थानी पद्यों में हैं। हिन्दी में आपकी अनेक कृतियाँ आयी हैं। अनेक काव्य भी प्रकाशित हुए हैं । आपने राजस्थानी पत्र में 'कालूयशोविलास' नामक पूज्यपाद कालुगणी की जीवनी लिखी है। यह वर्णन, भाषा और अलंकरण की दृष्टि से संस्कृत महाकाव्यों की पद्धति का राजस्थानीकरण है। काव्य तत्त्वों की दृष्टि से इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।' इसी पद्य शृंखला में 'माणक महिमा'तेरापंथ के छठे आचार्य श्री माणक गणी का जीवन, 'डालम चरित्त -तेरापंथ के सातवें आचार्य श्री डालगणी का जीवन, 'मगन चरित्त'-तेरापंथ के मंत्रीश्वर श्री मगनलालजी स्वामी का जीवन-ये तीन जीवनियाँ भी लिखी हैं। गद्य साहित्य की दृष्टि से आप द्वारा लिखित पत्रों को लिया जा सकता है। उनकी संख्या अनेक सौ है। उन सबका संग्रह हमारे लाडनू भण्डार में है। उनकी भाषा हिन्दी-संस्कृत मिश्रित राजस्थानी है। अब मैं आचार्य द्वारा अपने शिष्यों को लिखा गया पत्र, शिष्यों द्वारा आचार्य को लिखा गया पत्र तथा मुनि द्वारा अपनी साध्वी माता को लिखा गया पत्र-इन तीनों का संक्षिप्त नमूना उपस्थित कर रहा हूँ १. मुनि नथमल-जैन धर्म : बीज और बरगद, पृ० ४०. . . . . . . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211138
Book TitleTerapanth ka Rajasthani Gadya Sahtiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size587 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy