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________________ . . . .. . .. तेरापंथ का राजस्थानी गद्य साहित्य . ५३. ........................................................... इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र का भी आपने राजस्थानी भाषा में पद्यानुवाद किया है। स्थान-स्थान पर विशेष वार्तिक लिखे । उनकी संख्या दो सौ से अधिक है। उनका ग्रन्थमान है १५०० अनुष्टुपु श्लोक परिमाण । ___टब्बा-राजस्थानी भाषा में की गई आगम व्याख्या को 'टब्बा' कहा जाता है। इसका संस्कृत रूप है'स्तबक' । विक्रम की अठारहवीं शती में पार्श्वचन्द्रसूरि तथा स्थानकवासी परम्परा के धर्मसी मुनि ने गुजरातीराजस्थानी मिश्रित भाषा में आगमों पर स्तबक जिखे । विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी में आचार्य भिक्ष ने आगमों के सैकड़ों दुरूह स्थलों पर प्रकीर्ण व्याख्याएँ लिखीं।' इसी श्रृंखला में श्रीमज्जयाचार्य ने आचार चूलापर टब्बा लिखा । इसका ग्रन्थमान १०४०७ अनुष्टुप् श्लोक परिमाण है। इसकी पूर्ति संवत् १६१६ फाल्गुन शुक्ला १२, पुष्य नक्षत्र में हुई। इस व्याख्या की रचना में श्रीमज्जयाचार्य ने श्री मत्पायचंद सूरि कृत संक्षिप्त टब्बे तथा शीलांकाचार्य कृत टीका का तथा अन्यान्य आगमों का सहारा लिया था । आपने अन्त में लिखा 'श्रीभिक्षु-भारीमालजी-ऋषिराय प्रसाद करी ने चतुर्थ पट्टधारी जयाचार्य ए आचारांग नो टब्बो कियौ ते पायचंद कृत टब्बो तथा शीलांकाचार्य कृत टीका देखी अनेक सूत्र नो न्याय अवलोकी मिलतो अर्थ जाणी टब्बो कियो।' टहुका-श्रीमज्जयाचार्य ने साधु-साध्वियों में भोजन के संविभाग की व्यवस्था की। संविभाग अपने आप में सर्वोत्तम विधि है। किन्तु उसका अभ्यास न हो तब वह स्वाभाविक नहीं लगती । श्रीमज्जयाचार्य ने संविभाग का संस्कार डालने के लिए एक मार्ग निकाला। भोजन के समय सब साधु पंक्ति में बैठ जाते और एक साधु जयाचार्य द्वारा लिखित टहुके का वाचन करता । वह बहुत ही सरस गद्य में लिखा हुआ है। सिद्धान्तसार-श्रीमज्जयाचार्य ने आचार्य भिक्षु के ग्रन्थों पर 'सिद्धान्तसार' बनाए। इनको हम आधुनिक भाषा में तुलनात्मक अध्ययन कह सकते हैं । इन ग्रन्थों में आचार्य भिक्षु के मन्तव्यों को आगमों के आधार पर पुष्ट किया गया है। ये सारे राजस्थानी गद्य में रचे गए हैं । वे किस ग्रन्थ के विषय में हैं और उनका ग्रन्थमान क्या है-यह संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है ग्रन्थमान १. नव पदार्थ की चौपी पर (दीर्घ सिद्धान्तसार) ४८७५ २. वार व्रत री चौपी पर १४३५ ३. कालवादी री चौपी पर २८५५ ४. पर्यायवादी री चौपी पर ३४८६ ५. मर्यादावादी री चौपी पर ८३० ६. टीकम डोसी री चौपी पर २११५ ७. निक्षेपां री चौपी पर २५१५ ८ मिथ्यात्वी री करणी पर १४५० ६. एकल री चौपी पर ६२५ १०. जिज्ञासा पर १८१४ ११. पोतियाबंध री चौपी पर १२. विनीत अविनीत री चौपी पर २०५० १३. अनुकंपारी चौपी पर ३५०५ ७१० १. मुनि नथमल-जैन दशैन : मनन और मीमांसा, पृ०६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211138
Book TitleTerapanth ka Rajasthani Gadya Sahtiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size587 KB
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