________________ जैनाचार्य विजयेन्द्र सूरीश्वर : तुम्बवन और श्रार्य वज्र : 685 की बड़ी मूर्ति को वज स्वामी की मूत्ति बना दी. इन शास्त्रीय उल्लेखों के रहते, रथावर्त को दक्षिण में बताना और बाहुबलीकी मूर्ति को वज्रस्वामी की मूर्ति बताना दोनों ही बातें पूर्णतः भ्रामक हैं. दक्षिण वाली उस मूर्ति के लिये प्राचार्य जिनप्रभसूरि ने विविधतीर्थकल्प में लिखा है. ___ दक्षिणापथे गोमट देव श्री बाहुबलि : इसी रथावर्त के निकट वासुदेव-जरासंध में युद्ध हुआ था और इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है." इस वर्णन में केवल नीचे लिखे नगर आर्य वज्र के जीवन से सम्बद्ध बताये गये हैं : तुम्बवन, उज्जयिनी, पाटलिपुत्र, पुरिका, हिमवत हुताशनवन, रथावर्त. यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि उक्त विहार-क्रम में कहीं भी सिद्धाचल का वर्णन नहीं मिलता. आर्य शब्द का प्रयोग पहिले के युगप्रधान आचार्यों के नामों के पूर्व आर्य शब्द का प्रयोग देखा जाता है. यह परम्परा आर्य वज्रसेन तक रही जिनका स्वर्गगमन वीरात् 620 में हुआ. 1. विविध तीर्थकल्प पृष्ठ 85. 2. आवश्यक चूर्णि, पूर्व भाग, पत्र 235. 3. जैन गुर्जर-कविओ, भाग 2, पृष्ठ 707. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org