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तीर्थकर महावीर
का अनेकांत
और स्याद्वाद दर्शन
दर्शन के क्षेत्र में ज्ञान और ज्ञेय की मीमांसा चिरकाल से होती रही है। आदर्शवादी और विज्ञानवादी दर्शन ज्ञेय की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार नहीं करते। वे केवल ज्ञान की ही सत्ता को मान्य करते हैं। अनेकान्त का मूल आधार यह है कि ज्ञान की भाँति ज्ञेय की भी स्वतंत्र सत्ता है । द्रव्य ज्ञान के द्वारा जाना जाता है, इसलिए वह ज्ञेय है। ज्ञेय चैतन्य के द्वारा जाना जाता है. इसलिए वह ज्ञान है । ज्ञेय और ज्ञान अन्योन्याश्रित नहीं हैं । ज्ञेय है, इसलिए ज्ञान है और ज्ञान है, इसलिए ज्ञेय है। इस प्रकार यदि एक के होने पर दूसरे का होना सिद्ध हो तो ज्ञेय और ज्ञान दोनों की स्वतंत्र सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती। द्रव्य का होना ज्ञान पर निर्भर नहीं है और ज्ञान का होना द्रव्य पर निर्भर नहीं है । इसलिए
आचार्य श्री तुलसी द्रव्य और ज्ञान दोनों स्वतंत्र हैं। ज्ञान के द्वारा द्रव्य जाना जाता है, इसलिए उनमें ज्ञेय और ज्ञान का संबंध
को जानना और उसका प्रतिपादन करना प्रमाण है।
हम अनन्तधर्मा द्रव्य को किसी एक धर्म के माध्यम से ज्ञेय अनन्त है और ज्ञान भी अनन्त है। अनन्त को जानते हैं। इसमें मुख्य और गौण दो दृष्टिकोण होते अनन्त के द्वारा जाना जा सकता है । जानने का अगला हैं। द्रव्य के अनन्त धर्मों में से कोई एक धर्म मुख्य पर्याय है कहना । अनन्त को जाना जा सकता है. कहा हो जाता है और शेष धर्म गौण । नय हमारी वह ज्ञान नहीं जा सकता । कहने की शक्ति बहुत सीमित है। पद्धति है, जिससे हम केवल धर्म को जानते हैं, धर्मों को जिसका ज्ञान अनावृत होता है, वह भी उतना ही कह नहीं जानते । प्रमाण हमारी वह ज्ञान पद्धति है, जिससे सकता है, जितना कोई दूसरा कह सकता है। भाषा हम एक धर्म के माध्यम से समग्र धर्मी को जानते हैं । की क्षमता ही ऐसी है कि उसके द्वारा एक क्षण में एक हम अंधेरे में बैठे हैं। कोई आदमी गुलाब के फूल ले साथ एक ही शब्द कहा जा सकता है। हमारे ज्ञान की आता है। हम नहीं देख पाते कि उसके पास क्या है ? क्षमता भी ऐसी है कि हम अनन्तधर्मा द्रव्य को नहीं पर सुगंध से पता चल जाता है कि उसके पास गुलाब जान सकते । हम अनन्त धर्मात्मक द्रव्य के एक धर्म को के फल हैं। गुलाब के फूलों में केवल सुगंध ही नहीं है। जानते हैं और एक ही धर्म का प्रतिपादन करते हैं। उनमें रंग भी है, स्पर्श भी है और भी अनेक धर्म है । एक धर्म को जानना और एक धर्म को कहना नय है। यदि प्रकाश होता तो हम उन्हें आंखों से देखकर जान यह अनेकान्त और स्याद्वाद का मौलिक स्वरूप है। लेते । अनेक धर्मों में से जो भी धर्म मुख्य होकर हमारे उनका दूसरा स्वरूप है प्रमाण । अनन्तधर्मात्मक द्रव्य सामने आता है, वही उसके आवारभूत द्रव्य को जानने
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