________________ 4 / विशिष्ट निबन्ध : 397 है। किन्तु इसके उलटा 'भी' शब्द अपने दृष्टिकोण की आंशिक सत्यता बताकर भी दसरे आंशिक सत्यों का निषेध नहीं करता / अतः समग्र दृष्टिसे वस्तु का कथन करते समय हमें इस दुराग्रहकारी 'ही' से बचकर समन्वयकारी 'भी' शब्दके प्रयोग को अपनाना ही होगा। 'स्यात्' शब्द इसी 'भी' का प्रतिनिधि है। 'स्यात्' का अर्थ शायद, संभव या कदाचित् नहीं है। किन्तु यह 'स्यात्' सुनिश्चित दृष्टिकोणसे आंशिक सत्यता को बताता है। यह हम मानते हैं कि हर एक दृष्टिकोण भी अपनी आंशिक सत्यता का दावा 'ही' शब्दसे कर सकता है, पर संपूर्ण सत्यके लिए तो वह 'भी' ही कह सकता है। सारांश यह है कि स्याद्वाद भाषा संशय या संभावना रूप न होकर सुनिश्चित दृष्टिकोण या आंशिक सत्य को निर्णयात्मक रूपसे प्रकट करने वाली एक अहिंसक भाषा पद्धति है। इस तरह विचारमें अनेकान्त दर्शन, आचारमें अहिंसा, समाज रचनाके लिए अचौर्य और अपरिग्रह तथा इन सबके लिए सत्य की निष्ठा और जीवन शुद्धिके लिए ब्रह्मचर्य यानी इन्द्रियविजय आदि धर्म तीर्थ का प्रवर्तन महावीरने किया। हमने पंचशील का जो उद्घोष विश्वशान्तिके लिए किया है, वह महावीर जैसे तीर्थंकरों की अनेकान्त दृष्टि, समन्वय की प्रवृत्ति और अहिंसा की पवित्र भूमिका पर ही हुआ है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org