________________ " . . . . . I . . . . साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ -IRUITM TARIANDITATION . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . a ni ASRAM (च) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 475-476 (च) जल्लमललित्तगत्तो दुस्सहवाहीसु णिप्पडीयारो / ... (छ) तत्त्वानुशासन, 47-46 ....... देहेविणिम्ममत्तो काओसग्गो ताओ तस्स / / (ज) स्थानाङ्ग 4/65-71 -कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 467-468 (झ) राजवार्तिक, 1/7/14 102. आवश्यकनियुक्ति, 1546 (त) हरिवंश पुराण, 56/38-50 103. जैनधर्म में तप : स्वरूप और विश्लेषण (थ) धवला, 13/5,4,26 लेखक-मुनिश्री मिश्रीमलजी महाराज, पृ० 523 (द) मूलाचार, 368 97. (क) समवायांग, १४वां समवाय 104. (क) से किं दव्वविउसग्गे ? सरीरविउसग्गे, उवहि (ख) समयसार, गाथाङ्क 55 विउसग्गे, भत्तपाण विउसग्गे। से तं दव्व 18. (क) कर्मग्रन्थ, 4/2 विउसग्गे। -भगवती सूत्र, 25/7/150 (ख) समवायाङ्ग, 14/1 (ख) से कि ते भावविउसग्गे ? भावविउसग्गे (ग) गोम्मटसार, गाथा 12/13 तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-कसायविउसग्गे, 66. भारतीय योगसाधना में ध्यान, लेखक-राजीव संसारविउसग्गे, कम्मविउसग्गे। प्रचंडिया एडवोकेट, तुलसीप्रज्ञा, अंक-११-१२, -भगवती सूत्र, 25/7/151 फरवरी, मार्च 1982 (ग) बाह्याभ्यन्तरोपध्योः / 100. (क) नि:संग-निर्भयत्व जीविताशा व्यूदासाद्यर्थो –तत्त्वार्थसूत्र, 6/26 व्युत्सर्गः / -तत्त्वार्थ राजवात्तिक, 9/26/10 (घ) तत्त्वार्थसार, 7/26 (ख) बाह्यास्यन्तरदोषा ये विविधाः बन्धहेतवः / (ङ) मूलाचार, 406 येस्तेषामुत्तमः सर्गः स व्यूत्सगों निरुच्यते // (च) चारित्रसार, 154-155 -अनगार धर्मामृत, 7/64 105. (क) अमितगति श्रावकाचार, 8/57-61 (ग) सरीराहेसु हु मणवयण पवुत्तीओ ओसारियज्झे (ख) मूलाचार, 673-677 यम्मि। एयग्गेण चित्तणिरोहो विओसग्गो णाम // (ग) आवश्यकनियुक्ति, गाथा, 1456-1460 -धवला, 8/3,41/85 (घ) सो पुण काउस्सग्गो दव्वतो भावतो य भवित / 101. (क) कायापरदब्वे थिरभावं परिहरत्तु अप्पाणं / दव्वतो कायचेट्ठानिरोहो भावतो काउस्सग्गो तस्स हवे तणु सग्गं जो झावइणिव्वि अप्पेण / / झाणं // -नियमसार, 121 -आवश्यकचूर्णि (ख) नियमसार, तात्पर्याख्यावृत्ति, 70 (ङ) धर्म-दर्शन : मनन और मूल्यांकन (ग) परिमितकाल विषया शरीरे ममत्वनिवृत्तिः लेखक-देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृ० 128 कायोत्सर्गः। -राजवात्तिक, 6/24/11 106- आत्माऽऽत्मीय संकल्पत्यागो व्यत्सर्गः। कायो त्सर्गादिकरणं व्युत्सर्ग: / व्यसर्जनम-व्युत्सर्गस्त्यागः / (घ) देहे ममत्व निरासः कायोत्सर्गः / -सर्वार्थसिद्धि, 9/20-22-26 -भगवती आराधना वि० 6/32 (ङ) देवस्सियणियमादिसु जहत्त माणेण उत्तकालम्हि। जिणगुणा चिन्तण जुत्तोकाओसग्गो तणुविस्सगो। -मूलाचार, 28 तप:साधना और आज की जीवन्त समस्याओं के समाधान : राजीव प्रचंडिया | 106 कीaaman