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જ્ઞાનાંજલિ २. जैनेतर विद्वानों के लिखे ग्रन्थोंके उपर जैनाचार्यों द्वारा रचित व्याख्या-प्रन्थ । ३. दिगम्बराचार्य कृत ग्रंथ । ४. एक ही व्यक्तिके लिखाए हुए ग्रन्थोंकी राशि । ५. विषयानुक्रमसे श्रेणिबद्ध लिखाए ग्रन्थ । ६. ग्रन्थकारों की स्वयं लिखी हुई या शुद्ध की हुई या लिखाई हुई प्रतियां । ७. ग्रन्थकी रचनाके बाद उसमें किए गए सविशेष परिवर्तनकी सूचक प्रति । ८. ख़ास ख़ास महापुरुषोंके हस्ताक्षर । ९. श्रावक और श्राविका द्वारा लिखित ताड़पत्रीय प्रति । १०. शुद्ध किय हुए तथा टिप्पणी किए हुए ग्रन्थ । ११. स्याहीकी प्रौढ़ता और एक जैसी लिखावटको सूचित करनेवाली ग्रन्थसामग्री । १२. लेखनपद्धतिके प्रकार - त्रिपाठ, पंचपाठ, सस्तबक आदि । १३. भिन्न भिन्न शताब्दियोंकी भिन्न भिन्न प्रकारकी लिपियाँ । १४. ताड़पत्रीय अक्षरांकोंका दर्शन । १५. प्राचीन भारतमें व्यवहृत कागज़ोकी जुदी जुदी जातें । १६. राजकीय इतिहासकी दृष्टि से प्रतियोका संकलन । १७. सुनहरी और रूपहरी अक्षरोंमें लिखित सचित्र कल्पसूत्र आदि । १८. सचित्र ताड़पत्रीय तथा कागज़की प्रतियाँ ।
१९. चित्रशोभन, रिक्तलिपिचित्रमय, लिपिचित्रमय, अंकचित्रमय, चित्रकर्णिका, चित्रपुष्पिका, चित्रकाव्यमय प्रतियां ।
२०. विज्ञप्तिपत्र एवं वर्धमान-विद्या आदिके पट । २१. अनेक प्रकारके बाज़ी, गंजीफे आदि ।
२२. जीर्ण-शीर्ण, सड़ी-गली प्रतियाँको कागज़ आदि चिपका कर उनका पुनरुद्धार करनेकी कला प्रदर्शित करनेवाला ग्रन्थसंग्रह ।
२३. ताड़पत्र, कागज़ आदिके नमूने ।
२४. लेखनकी सामग्री-दावात, कलम, तूलिका (पींछी), ग्रन्थी, बट्टे, भोलिए, जुजबल, प्राकार, स्याही, हरताल आदि ।
१. प्रदर्शनी देखनेवाले प्रेक्षकोंको एक खास सूचना है कि यहां पर रखी गई सामग्रीमें जो उसके लेखन आदिके संवत्का निर्देश किया गया है वह विक्रम संवत् समझना चाहिए ।
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