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पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[ खण्ड
'निर्विकल्पक ज्ञान' के समतुल्य है । जिनभद्र इस ज्ञान को 'व्यंजनावग्रह' मानते हैं, जबकि सिद्धसेन इसे अर्थावग्रह का पूर्ववर्ती मानते हैं | इससे स्पष्ट हैं कि चक्षु मन के अतिरिक्त चारों इन्द्रियों से होने वाला व्यंजनावग्रह दर्शन की कोटि में नहीं आता । लेकिन सिद्धसेन के अनुसार, दर्शन और ज्ञान की प्रक्रिया सम-सामयिक होती है और साधनभेद होने पर भी व्यंजनावग्रह और दर्शन की कोटि समतुल्य है । परन्तु दर्शनपूर्वक ज्ञान की मान्यता से ऐसा प्रतीत होता है कि अनेक दार्शनिक सिद्धसेन के मत को नहीं मानते । वे दर्शन को पदार्थ और इन्द्रिय के सम्पर्क से पूर्ववर्ती प्रक्रिया मानते हैं । यह मत सहज बोधगम्य नहीं प्रतीत होता । इससे 'दर्शन' अनुपयोगी सिद्ध होता | अतः इसे 'अर्थावग्रह' की पूर्वप्रक्रिया मानना अधिक तर्कसंगत लगता है । इन्द्रिय और पदार्थ के प्रथन सम्पर्क के उपरान्त कुछ समयों में अनेक बार वस्तु दर्शन होता है, तब किंचित मन के योग से वस्तु के आकार, रूप आदि कुछ विशेषताओं का ज्ञान होता है । इस स्थिति में दर्शन की प्रक्रिया 'अवग्रह' नामक दूसरे चरण का रूप ले लेती है । इस प्रकार पदार्थ विषयक विकल्प बुद्धि अवग्रह कहलाती है । यह चरण उत्तरवर्ती चरणों का प्रेरक है और ज्ञान को पूर्ण तथा विशिष्ट निश्चयात्मक रूप देने में सहायक है । अवग्रह-ग्रहीत जाति सामान्य के रूप में विकल्पित पदार्थों के विषय में विशेष ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा या विचारणा ईहा नामक चरण है। सफेद रूप को देखकर यह बगुला है या पतंग-रूप संशय होता है, रस्सी-सर्प संशय होता है। इसके लिये बार-बार दर्शन एवं अवग्रह की प्रक्रिया अपनाई जाती है और फिर मानसिक विश्लेषण द्वारा निश्वयोन्मुखता की ओर प्रवृत्ति होती है । यह ईहा प्रवृत्ति अवग्रह प्रक्रिया का कार्य है एवं ज्ञान प्रक्रिया का तीसरा चरण है । ईहा में किये गये बौद्धिक विश्लेषण से निर्णयात्मक निष्कर्ष पर पहुँचने के चरण को 'अवाय' कहते हैं यह चौथा चरण है । अवाय प्रक्रिया से निर्णीत वस्तु को कालान्तर में स्मरण रखने या विस्मृत न करने की योग्यता या प्रक्रिया को 'धारणा' नामक पाँचवां चरण कहते । यह स्मरणात्मक ज्ञान बाद में अक्षरात्मक श्रुत का रूप लेता है । अत्राय के समान धारणा भी मुख्यतः मन या बुद्धि व्यापार है । इन पाँचों चरणों का संक्षेपण सारणी ३ में दिया गया है। शास्त्रों में बताया गया है कि यथार्थ ज्ञान की स्थिति में ये पाँचों सारणी ३ : ज्ञान प्राप्ति के पांच चरणों का संक्षेपण
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अवग्रह
वस्तु सामान्य का
ज्ञान
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१. स्वरूप
२. प्रकृति ३. भेद
४. साधन
५. स्थायित्व
६. कार्य
७. उदाहरण
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दर्शन
वस्तु सामान्य का दर्शन
दर्शन रूप
चार
(चक्षु, अचक्षु, अवधि, मन:पर्यय)
इन्द्रिय अर्थ का प्रथम सम्पर्क
असंख्यात
समय
दर्शन
कुछ है
दर्शन + ज्ञान रूप दो
( अर्थ, व्यंजन)
वस्तु विशेष की पहिचान के लिये
बौद्धिक विश्लेषण मनो व्यापार
इन्द्रिय अर्थ का सम्पर्क + किचित् मनो व्यापार
एक समय, असंख्यात अन्तर्मुहूर्त
समय
दर्शन + ज्ञान
रूपमात्र है
अवग्रह ग्रहोत पर मनो व्यापार
विश्लेषणात्मक
सफेद-काले रूप
का विश्लेषण
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अवाय
विशेष का
वस्तु निर्णय
मनो-व्यापर
मनो व्यापार
अन्तर्मुहूर्त
निर्णय
श्वेत रूप है।
धारणा
स्मरण
क्षमता
ज्ञान रूप
मनः संस्कार
असं ०
समय
वासना
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