________________ 4] ज्ञान प्राप्ति की आगमिक एवं आधुनिक विधियों का तुलनात्मक समीक्षण 227 उपसंहार उपरोक्त निरूपण से यह स्पष्ट है कि सूक्ष्मतर विवरणों के शास्त्रीय मतभेदों के बावजूद भी, भौतिक जगत सम्बन्धी ज्ञान की प्रक्रिया और कारकों से सम्बन्धित जैन निरूपण वैज्ञानिक मान्यताओं के समरूप है। तथापि ज्ञाता आत्मा एवं अतीन्द्रिय ज्ञान सम्बन्धी मान्यता वैज्ञानिक सहमति की प्रतीक्षा कर रही है। डेलरीप ने सही कहा है कि जैनों का ज्ञान-सिद्धान्त इन्द्रिय और श्रुत ज्ञान के स्तर पर कार्य-कारणवाद की मान्यता पर आधारित होने से प्राकृतिक है, पर ज्ञान के उच्चतर स्तर पर यह वस्तुतः अन्तःप्रतिभात्मक हो जाता है। यह प्रात्तिभ ज्ञान जाँचनीय न भी हो, पर प्राकृतिक ज्ञान तो नये-नये तथ्यों एवं सत्यों के परिप्रेक्ष्य में जाँचनीय और परिवर्धनीय होना ही चाहिये। निर्देश सूची 1. टाटिया, नथमल; तुलसी प्रथा, जैन विश्वभारती, लाडनूं, दिसम्बर, 78 / 2. अकलंक, भद्रः तत्वार्थ राजवातिक-१, भा. ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1953, पेज 33 / 3. शास्त्री, कैलाशचन्द्र, जैन न्याय, भा० ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1966, पे० 328 / 4. जैन, एस० ए०, (अनु०); रोयलिटो, वीर शासन संघ, कलकत्ता, 1960, पेज 11-15 / 5 पूर्वोक्त, पेज 15 / 6. देखिये, निर्देश 2, पेज 69-70 / 7. संधवी, सुखलाल (टी.); तत्वार्थ सूत्र, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, काशी, 1976, पेज 124 / 8. देखिये निर्देश 2, पेज 61 / 9. देखिये, निर्देश 3, पेज 147-57 / 10. देखिये, निर्देश 9, पेज 65 / 11. प्रभाचन्द्र आचार्य; प्रमेयकमलंमातंड, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, 1941, पेज 231-39 / 12. डेल रीप नेचुरलिस्टिक ट्रेडीशंस इन इंडियन थौट, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1964, पेज 83 / 13. देखिये, निर्देश 4, पेज 27 / 14. देखिये, निर्देश 2, खण्ड 2, पेज 484 / 15. देखिये, निर्देश 2, पेज 90 / 16. जैन, एन० एल०; कन्टेक्टिलिटी आव आई-एन इवेलुयेशन, तुलसी प्रज्ञा, लाडन, 6, 19, 1982 / 17. कुन्दकुन्द, आचार्य; नियम सार, जैन पब्लिशिंग हाउस, लखनऊ, 1931, पेज 12 / 18. न्यायाचार्य, महेन्द्रकुमार; जैन वर्शन, वर्णी ग्रन्थमाला, काशी, 1966, पेज 285 / 19. देखिये निर्देश 3 पेज 165 / 20. देखिये निर्देश 3 पेज 277-94 / 21. मेहता, मोहन लाल; जैन फिलासोफी, जैन मिशन सोसाइटी, बेगलोर, 1954, पेज 113 / 22. बाल्टर शूबिंग; दक्टरिव ऑब जैनाज, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली, 1966, पेज 74 / 23. मालवणिया, दलसुख; आगम युग का जैन दर्शन, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, 1966, पेज 16 / 24. देखिये निर्देश 22 पेज 75-76 / 25. नेमचन्द्र चक्रवर्ती; गोम्मटसार जीवकाण्ड, रामचन्द्र जैन ग्रन्थमात्कर, अगास, 1972, पेज 180 / 26. देखिये निर्देश 12 पेज 91 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org