________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि "बुद्धि तृष्णा की दासी हुई, मृत्यु का सेवक है विज्ञान। चेतता अब भी नहीं मनुष्य, विश्व का क्या होगा भगवान्?" / मनुष्य की बुद्धि तृष्णा की दासी हो गई है। तृष्णा निरन्तर बढ़ती जा रही है। विज्ञान का भी उपयोग अधिकांशतः विध्वंसक अस्त्रों के सृजन में हो रहा है। ऐसी स्थिति में मनुष्य को सुख और शान्ति कैसे प्राप्त होगे? ___ भारतीय शिक्षा का आदर्श है - भौतिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान का समन्वय / जैन शिक्षा के तीन अभिन्न अंग है - श्रद्धा, भक्ति और कर्म। सम्यक् दर्शन से हम जीवन को श्रद्धामय बनाते हैं, सम्यक् ज्ञान से हम पदार्थों के सही स्वरूप को समझते हैं और सग्यक् चरित्र से हम सुकर्म की ओर प्रेरित होते हैं। इन तीनों का जब हमारे जीवन में विकास होता है तभी हमारे जीवन में पूर्णता आती है। यही जैन शिक्षा का संदेश है, हम अप्रमत्त बने, संयमी बने, जागरुक बने, चारित्र-सम्पन्न बने। तभी हमारे राष्ट्र का तथा विश्व का कल्याण संभव कर्मठ समाजसेवी एवं प्रबुद्ध लेखक श्री दुलीचन्दजी जैन का जन्म 1-11-1636 को हुआ। आपने बी.कॉम., एल.एल.बी. एवं साहित्यरत्न की परिक्षाएं उत्तीर्ण की। आप हैं। आपने 'जिनवाणी के मोती' 'जिनवाणी के निर्झर' एवं 'Pearls of Jaina Wisdom' आदि श्रेष्ठ ग्रन्थों की संरचनाएं की हैं। आप कई पुरस्कारों से सम्मानित - अभिनन्दित। - सम्पादक किए हुए उपकार को न मानना अकृतज्ञता है। माता-पिता, गुरुदेव, भर्ता, पोषक मित्र आदि द्वारा किए गए उपकारों को स्वीकार न कर विपरीत प्रतिकार करना “मेरे लिए क्या किया है, इन्होंने?" मन की यह अभिमान वृत्ति है। यह गुणों की नाशक है। स्वप्न के समान संसार का स्वरूप है। जिस प्रकार सोया हुआ व्यक्ति स्वप्न में नाना प्रकार के दृश्य देखता है और स्वयं को भी स्वप्न में राजा आदि के रूपों में देखता है किन्तु जागृत होते ही वे सब दृश्य लुप्त हो जाते हैं, इसी प्रकार जगत् भी बनता है, बिगड़ता है, एकावस्था में नहीं रहता। -सुमन वचनामृत जैनागम में भारतीय शिक्षा के मूल्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org