________________ चतुर्थ खण्ड | 338 सम्प्रदाय में फंसा है। साम्प्रदायिक उन्माद ने धर्म-ज्योति को मलिन कर दिया है / समतावादी समाज की रचना के लिए साम्प्रदायिकता, जातिवाद, संकीर्णता और दुर्भावना को त्यागना होगा। जैनदर्शन इस युग में हमें नयी समाज-संरचना का व्यावहारिक रूप प्रदान करता है। सम्प्रदाय की प्रतिबद्धता की केंचुली को उतारना होगा। साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण हम दुसरे सम्प्रदाय की निन्दा करते हैं, दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की जरूरत नहीं समझते, क्योंकि एकान्तिक प्राग्रह से ग्रस्त होते हैं। धर्म-दृष्टि को व्यापक, उदार बनाने पर, धर्म-सहिष्णु होने पर, आत्मौपम्य दृष्टि विकसित करने पर अवश्य समतावादी समाज की -हिन्दी विभागाध्यक्ष इस्लामिया कॉलेज, श्रीनगर-१९०००२ (कश्मीर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org